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भेदज नथी. अन बीजाज जे भेदो शास्त्रकारोए करेला छे ते पण विवक्षाना वशथी थयेला छे, तोपण व्यवहार सम्यत्कना छोडीने, उपशमादिक लक्षण पूर्वक जे सम्यत्कना भेदा छे ने बधाए भेदोंने समावेश ए त्रण सम्यत्कमांज थाय छे.| जूवा तत्त्वार्थ महासूत्रं--
औपशमिक क्षायिको भावो मिश्रश्च जीवस्पस्वतत्वं. ___ अर्थ-अपशमिक, क्षायिक, अने मिश्र एवण तत्त्व क्षयोपशमथी, थयेला अथवा कर्मना क्षयथी थयेला ए जीवना स्वतत्वरूप भाव छे, अने एज रूप सम्यत्क छे. अने एज रूपी चारित्र पण छे, अने ज्ञान छे ते वे भावथी छ, एकतो क्षयोपशमिक. अने वीजु क्षायिक भावथी, वास्ते भावरूपथी, के निश्चयरूपथी उपशमादिक लक्षण पूर्वक जे जे दर्शन (सम्यत्क) ना भेदो. अन भावरूपथी, के निश्चयरूपथी, जे जे चारित्रना भेदा वर्णवेला छे. ते बधा, ए त्रण भावमांनाज भेदो छ.। अने ज्ञानना जे जे भेदो छे ते क्षयोपाशमिक अने क्षायिक मात्र बेज भाव रूपना छ. । परंतु ज्ञान दर्शन अंने चारित्ररुप जे-जीवना निज गुण छ ते चोथा भावथी छेज नहीं, । आ बधु कहवानुं प्रयोजन ए छे के, उपशम, अने अयोपशम, सम्यक छ, ते व्यवहार सम्यक नथी परंतु निश्चय सम्यक छ, अने संवेगादि पांच लक्षण छ तेतो, निश्चय सम्यत्कने जणाववावालां तेना चिन्हरूपे छे, जेमके, धुमाडाना गोटा निकलवाथी जाणी शकीय के, अहीं अग्नि बली रही छे, परंतु धुमाडानेज अग्नि नही कही शकीये, नेम संवेगादि पांच लक्षणने, सम्यक पण न कही शकाय. || अन ए पांच लक्षणो पण, जेने निश्चय सम्यकमांनुं एकाद सम्यक प्राप्त थयुं होय, तेनेज ए चिह्नरूपथी प्रगट होय, परंतु व्यवहार सम्यक वालाने जरुर प्रगटरूपे होय, एम कोइ दाहाडो पण निश्चय न करी शकाय.। हवे मूलना विषयपर आवीये छे. ॥ जे नमो संवेगादि पांच लक्षण
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