Book Title: Dharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Author(s): Amarmuni
Publisher: Amarvijay Jain Pathshala

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Page 214
________________ २१० आपेला " दयाधर्म " ना दृष्टांतमां विचारी जो जो. || हवे " भक्ति आश्रित " धर्मना संबंधे आपला दृष्टांतमां, विचार करीने किंचित् बता हूं. ॥ " ॥ भूख्या, अने पासा आवेला, श्रावकोना प्रथम दृष्टांतमां जुवो के सिद्धांतनी दृष्टिने छोडी दइ, मूढ पणाथी कल्पेला, दया नामना ध्रुवतारा तरफ हा टेकीने, अने तेओना संबंधे थतो आरंभ, आपण कल्पेला जुदा विचारथी मनमां लावीने चालवावाला छेतेनाथी ते आवेला साधर्मि भाइयोनी, भक्ति पण वनी सकसे नही । अगर कोई लाज काजना हिसाबथी करसे तो ते साधर्मी भाइनी भक्तिनो लाभ मेळवी पण सकसे नही । केमके कोइ पुछे के तमो, आटलो वो आरंभ करे, आ बधी खटपट, सेना वास्ते करोलो ? | तो तेओ केवळ धर्मनाज संबंधवाली खटपट करता छता पण, मुढ पणाथी कल्पेला, दया नामना ध्रुवतारानी दृष्टिने कानी थाना भयथी, विचार मुह थइ, एवो उत्तर आपी देछे के, ए तो अमारो संसार खातो छे । एम कही थवावाला धमना लाभने पण गमावी दे छे । परंतु एवं नथी कही सकता के, भगवंतनी आज्ञा प्रमाणे आ धर्मनां कर्तव्यो करी, अमो अनेक प्र. कारना आरंभमां बेठा छता, अमारा श्रावक पणानी फरज बजावी अमारा जन्म जीवतव्यनुं साफाल्य पणुं करी लइए छोए । एज अमो तेओनी मूढतानुं, प्रथम चिन्ह समजीये छीए. केमके अनेक प्रकारना आरंभमां सदा काळ बेठेलाने, परोपकारना अने भक्तिना काममां किंचित् मात्रना आरंभथी, संसार खातो केहवा तप्तर थवं, ते कें सानपत गणं ? अने ते काममां, संसार खातानो शुं संबंध छे ? ।। तेमज अनेक प्रकारना आरंभवाला संघ कहाडीने, साधुनां दर्शन करवा जतां, संसार खातानो शुं संबंध छे. ? । अने एज प्रमाणे साधुने लेवा जतां, दीक्षा महोत्सवमां भेळा थतां, तेमज संथारा करेला Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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