Book Title: Dharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Author(s): Amarmuni
Publisher: Amarvijay Jain Pathshala

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Page 199
________________ थी तमारा पाटा खुली जशे ? अगर जो कीकी वगरनी आंख्यो वाला थइ बेठशो तो, पछी कांइ पण जोइ शकवाना नथी । तेथी तमने हर कोइ एमज कहेशे के, पाकु अभिनिवेशिकपणुं लइ बेठेला होवा छता, पण आपणो दोष स्थापणे बीजा उपर आरोपीने, धोलाफक बनवाने चाहो छो, परंतु एम, घोला फक बनी शकाय नही ? । बाकी अमो तो परंपराधी शुद्धपणे आवेलो, अने गुरु महाराजनो बतावेलो, तत्वाऽतत्वनो मार्ग, तेने पूर्ण रीते नही पहोंचवा छतां पण, सारी रीते ते जैनना मार्गने, दिशावलोकनना स्वरूपथी जोइ, आनंद निमम थइ रहीये छीये, तेथी खीर समुद्रना दुध जेवा तत्वतुं पान करवा वाला भव्य पुरुषोने, खारा समुद्रना पाणी रूप तमारा तुछ लेखथी, कोइ दिन पण तृप्ति थइ शकशे नही एम. खासपणाथी विचार करीने अने आवा अनुचितपणाना लेखो लखवाथी दूर रही, तमो जे कांइ समारु पोकल चलावता होय; तेने चाल वाद्यो, कोइ तमोने आडु आवे तेम नथी ? परंतु अनहद फाजलपणे जइ, जे जुहा आक्षेपो करो छो तेथी कोइ रीते पण तमारा जुहा मतनी जींदगी, वधवां पामशे नही ? एटली हित शिक्षा लखीने आ ग्रंथना लेखनी समाप्ति करुं छ.॥ इतिश्री मद्विजयादानंद सूरीश्वरलघुशिष्येनाऽमरमुनिना धर्मना दरवाजा संबंधि मिथ्यात्वनाम्न सप्तम प्रकरणस्यतत्वाऽतत्व विचारः समाप्तो जातः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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