Book Title: Dharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Author(s): Amarmuni
Publisher: Amarvijay Jain Pathshala

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Page 198
________________ १९४ "" विचार करो के, अतीत कालना तीर्थकरोनी प्रतिमाने पण, वंदना करे, पूजा करे एवं खुद भगवान् पोते, गौत स्वामीने कहे छे, तेथी अनादि कालनी जिनमतिमा छे एम सिद्ध थाय छे के नही ? | वळी जोवानुं ए छे के, उवाईसूत्र तथा विपाकसूत्र, । अने अंतगढ सूत्र, । आदि सूत्रोंमां ज्यां यक्षोना मूर्त्ति मंदिरोनुं वर्णन चालेलुं छे, त्यां पुण्णभद्द चेइये " आदिना पाठथीज वर्णन करेलुं छे, तेवी ज रीते ' अरिहंत चेइय ' पाठथी वर्णन छे अने तेनो अर्थ, मंदिर मूर्त्तिनो, टीकाकाराए, तेमज टब्बाकारोए, करेलो छे, । अने ढूंढनी पण सत्यार्थमां लखे छे के 'चेइय' शब्दनो अर्थ ' प्रतिमा ' टीका, टब्बाकारोए, पक्षपातथी करेलो छे. । एम लखी, उन्मत्त पणाने धारण करी, एक पण प्रमाणिक ग्रंथनी साक्षी आप्या विना, आधुनिक महा मुढोनां गंदां वचनथी आपना हर हडता जूहनी सिद्धाइ करवा मंडी पडी छे, परंतु गुरु परंपराथी आवेलो, अने हजारो आचार्यांना एक मतथी. जैन मतनां हजारो सिद्धांतो पर चढी गयेलो होवाथी, ज्ञाननो अर्थ कोइ दिन पण करी शकायज नही, अने साक्षात् तीर्थकरने वंदना करतां छतां पण जे 'चेइय शब्द वापरेलो छे, ते पण तीर्थकरांनी प्रतिमाने वंदन करवा रूपथी बीजा सर्व तीर्थकरोनो आदरज प्रदर्शित करेलो छे, अने एज वाक्य, जिन प्रतिमा जिन सारखी, एवा जैन सिद्धांतनी पण सिद्धि करावे छे, परंतु ते तमारी मूढताथी तमो जोइ शकता नयी, तेथीज सिद्धांतकारोने वृथा निंदो छो. । आ विषयमा वधारे खुलासो जोवो होय तो जुवो, सम्यक्त्व सल्योद्धार, तथा अमारु योजेलुं ढूंढक हृदय नेत्रांजन, अथवा आ तत्त्वाऽतत्त्वना निक्षेपना विषयमा विचारीने जुवोके तमारी केटली मुढता थयेली छे ते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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