Book Title: Dharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Author(s): Amarmuni
Publisher: Amarvijay Jain Pathshala
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म १ प्रथम दृष्टांतमां, दस्त रोकवा वाला साधुने, महा व्याघिना संकटमांधी, आज्ञा आपीने भगवंते बचावेलो छे. ॥
२ अने बीजा दृष्टांतमां भगवंते नदी उतरवानी रजा आपी, नित्यवासना महा दूषणोथी तां साधुने, अने वीजा स्थलना लोकोने साधना दर्शनथी, तेमज तेना उपदेशे धर्मनी प्राप्तिथी, अनंत जन्ममरणना भयथी पण बचावी, स्वपरनी दयाज विचारी छे. ॥
आ दृष्टांतमां विशेष विचारवानुं ए छे के, जे साधुए, सूक्ष्म अने बादर, बंने प्रकारना जीवोनी हिंसानां पच्चखान, त्रिविधेत्रिविधे, ( अर्थात् मन, वचन, अने कायाथी करु नही, करावं नही, करताने भलो पण जानु नही एम ) करेलां छे, । एवा महा त्यागी साधुने पण, नदी उतरतां, दव्यपणाथी सूक्ष्म 'छए, कायना जीवोनी विराधना थवा छतां पण, भविष्यकाळमां अनेक प्रकारनो लाभ जाणीने, भगवंते रजाज आपेली छे. (तेनो पाठ, आचारांग सूत्रना मूलमांज छे, अने तेनो उतारो, सम्यक्क शल्लयोद्धारना पाछला भागमां, आपेलो छे । तेथी अमोए लखीने बताव्यो नथी. ) ज्यारे एवा महा त्यागीने पण, नदी उतरवाथी, लाभज गणेलो छे, तो पछी जे गृहस्थो केवल बादर जीवोनी हिंसानां पञ्चखान करी, संसारना अनेक प्रकारना सुखमां मन थइ, रात, अने दिन, सर्व प्रकारना महा शस्त्ररूप तो, 'अग्निनो' आरंभ करी रह्या छे, तेमज मणोभर पाणीने ढोली 'अप्कायना जीवोनो' पण घाण कहाडी रह्या छे तेमज ' हरिकायनो' पण नाना प्रकारथी भोग करी रह्या छे, । ते सिवाय घर, हाट विगरेने बंधावतां समारतां 'सकायना जीवोनो' पण आरंभ करी रह्या छे, । तेमज अनेक प्रकारना बेपार करतां पण त्रस कायना जीवोनी विराधनानो अंतज जणातो नथी । एवी रीते
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