Book Title: Dharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Author(s): Amarmuni
Publisher: Amarvijay Jain Pathshala
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________________ 202 सदाकालपणे 'छकायना' महा कुटामां बेठेला छे, तेवा गृहस्थोने, किंचित् मात्रना आरंभवाला ' जिनपूजनमां, महा मृढताने धारण करी, हिंसा थाय छे, हिंसा थाय छे, एवो जुठो पोकार करी, / आ भवनो, तेमज परभवनो, सर्व प्रकारथी निस्तार करवा वाली, अने श्वेतांबर, दिगंबरना, लाखो आचार्यना एक मतथी, जैननां लाखो पुस्तको उपर सास्वता, तेमज असास्वता, जिनबिंबना स्वरूपथी चडी चुकेली, अने अन्यमतना पुराणग्रंथादिकथी, असास्वती प्रतिमाओ साक्षीरूपे थयेली, अने जूनी जमीनथी साक्षात्पणे जिन मूर्तियो बहार आवी भव्य पुरुषोने दर्शन आपी रहेली, एवा अलोकिक चमत्कार वाला, वीतरागदेवनी भक्तिथी, भ्रष्ट करी, केवल वीतराग देवनीज निंद्या करवा वाला बनाववा, ए केवा धर्मियो समजवा, / तेनो विचार करवानुं वाचकवर्गने सोंपी, दईने हुं मारा चालता बीजा विषयना विचारने वलगी पहुं छं. // 3 गुरुना आधीनमा रहेवाथी शिष्यने, तत्त्वज्ञान मले, अने तत्त्वज्ञानथी मोक्षनी प्राप्ति थाय, / वास्ते गुरुनी आज्ञामां शिष्यने रहेवू, एवी भगवाननी आज्ञा छे, ते पण ते शिष्यनी दयाने माटेज छ, अने जे सामान्य मात्रना कार्यमां, मूढपणानुं मूसलु पकडी, गुरु भक्तिथी भ्रष्ट थयेलो छे, ते वीजा कया गूढ तत्वोनो, अधिकारी बनवानो छे. ? / अने ते तत्त्व विनानो, एके भवनुं सार्थकपणुं करी शकवानोज नथी, // विचारी जोतां एज गति, अमारा ढूंढक भाइईयोनी प्रथमथी थयेली चाली आवे छे, अने ते आज सुधी पण, मूढपणानुं मुसल हाथमां धरी, आपणे आप सर्वज्ञ बनी, पूर्वना महान् महान् आचार्योने पण, सर्वथा प्रकारथी तुछ गणी, तेमनी निंदा करवानेज मंडी पडे छे. / अने ते आजकालना जन्मेला, अने सर्व प्रकारनी लालचदाला, / सर्व प्रकारथी तुछ, अने महा विकलरूप, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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