Book Title: Dharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Author(s): Amarmuni
Publisher: Amarvijay Jain Pathshala

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Page 201
________________ १९७ ॥ एमां विचार ए छे के-उपर लखेलो लेखकनो लेख, अभिनिवेश रूप, महा मिथ्यात्व भूतना आवेशथी, केवल मुढताथीज लखायेलो छे. । केमके, जैनधर्मना पायानुं जेटलं मंडान छे, ते बधु ए दयामयज छे, वास्ते तेने माटे विशेषपणे काइ पण लखवानी जरुरज नथी. । हा विशेषमां ए लखवानी जरुर छे के, नय-निक्षेपनी, भूल भूलामणीमा घुचाइ जवावालाए, जे आचारांग सूत्रनो पाठ छे, तेनाज आधीन थइ, वीतराग देवना शुद्धमार्गनी सडकनो रस्तो छोडवो नहीं, पण तेनाजान पुरुषोंने पुछीने, निर्णय करवो, तम प्रयत्न करतां निर्णय न थाय तो पछी “ तमे व सञ्चं जंजिणहिं पवेइयं ” अर्थात् तेज साचु छे, जे जिनेश्वर देवोए कहेतुं छे. ! परंतु मारी समजमा हजी शुधी काइ आवतुं नथी. । एवो विचार करी, जैनधर्मनां अनेक फांटामांना एकाद फांटामां रहीने पण, मध्यस्थ भाव अंगीकार करी लेबानो छे. । परंतु मूढ पुरुषोनां मूढता भरलां वचनांने हाथम धरी, बांदरफाल भरी लेवी नहीं, के जेथी आपणो आत्मा अनंत मरणना भयमां आवी पडे. । बास्ते खरेखरो धूवनो तारो तो एज छे के, । " तेज साचु छे जे जिनेश्वर देवोए कहेलं छे" । बाकी दया नामना तमारा कल्पित ध्रुव तारा तरफज केवल दृष्टि टेकाने चालवावालाने तो, अवश्य कर्तव्य रूप धर्मना कार्यमां पण, विपरीत विचारथी, मुजाइने, आ भवना सार्थकथी, तेमज परभवना सार्थकथी पण, भ्रष्टज थवानो प्रसंग आवे तेम छे, परंतु लाभनो प्रसंग कदापि नही मेलबी शके. । केमके, केटलांक धर्म कार्योमां पण, अदृष्टि गत सूक्ष्म जीबोनी विराधना, द्रव्यरूप हिंसाना स्वरूपथी थवा छतां पण, वीतरागनी आज्ञाथी वर्तन करतां, आ भव नो, तेमज परभवनो पण, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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