Book Title: Dharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Author(s): Amarmuni
Publisher: Amarvijay Jain Pathshala
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५ धर्म पामेलो माणस धर्मथी डगतो होय तेने ज्ञानवडे अने जरुर पडे तो द्रव्यादिकनी सहाय दइने धर्ममां स्थिर करे. ||
विचार - अमारा ढूंढकभाइये, पांच प्रकारना भूषणने, तदन उलटावीने, आपणीज चातुरीनी चादर पाथरी, अजाण वर्गने भ्रममां नाखबा उपाय कर्यो छे । परंतु शास्त्रकारोनो ए मत नथी, जूवो प्रवचन सारो द्धारमां
तथाच गाथा.
जिण सासणे कुसलया, पभावणा ययणसेवणा थिरया भत्तीय. गुणा सम्मत दीवया उत्तमा पंच. ॥ १ ॥
॥ अर्थ - जिन शासनने विषे कुशलता, अनेक प्रकारथी जाने प्रतिबोधी जिनशासनने विषे दृढ करे. ।। १ ।।
एज प्रमाणे आपणी कुशलताथी जिनशासननी प्रभावना करे, अर्थात् सर्व मतोथी उच्चत्वपणे मुकवा प्रयत्न करे. ॥ २ ॥ हवे त्रिजुं भूषण तीर्थ सेवा, गाथाकारे आयतन शब्दथी प्रहण करेली छे । तेना बे भेद - द्रव्यथी शत्रुं जयादिक तीर्थोंना मंदिरोनी सेवा, । अने भावथी ज्ञान, दर्शन, चारित्रना धारक साधुनी सेवा, । अर्थात् स्थावर जंगम तीर्थनी सेवा, । ए बन्ने प्रकारनातीर्थनी, सेवा, भक्ति, रक्षण, आदि करवाथी सम्यक्त्वनी उज्जवलता बधे छे.
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हवे ४ थुं भूषण' स्थैर्य ' प्रथम आप, पोते, कोइनो डगाव्यो जैनधर्मी डगे नही, तेमज बीजो कोइ जैनधर्मथी डगतो होय तेने पण टेको आपी धर्ममां स्थिर पणे करी लेवे ॥ ४ ॥
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