Book Title: Dharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Author(s): Amarmuni
Publisher: Amarvijay Jain Pathshala

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Page 179
________________ १७५ चमत्कारी विद्या, देव देवीने साधवानी विद्या, पण में तेनो समावेश चोथाप्रकारमां करी दीघेलो होवाथी, विद्या एटले विविधज्ञान, ए अर्थ मने वधारे पसंद छे. ॥ || आ लेखथी विचार करबानो ए छे के, आ अमारा ढूंढक भाइए, ज्यारथी आ चोपडीमा लेख लखवानी शरु कर्यो छे, त्यारथी आपणे आप जैनतीर्थना अधिपतिनुं ( अर्थात् साक्षात्पणे तीर्थ प्रवर्त्ताविवाने जाणे तीर्थकरपणाना अवतारनं ) डोल धारण करी, गणधर महाजाओथी निरपेक्ष थइ, चार निक्षेपना विषयमां आपणा मनमां जे आव्युं ते लखीवाल्युं, अने २५ बोलना विषयमां पण गणधर महाराजाओथी विपरति थइ, महा दूषणानां विचार कर्याविना, आपणीज मतिनो खीचडो भेगो करी जाहेरपणामां, बेचबाने तैयार थया । अने सर्व पूर्वधरादि महापुरुषोथी निरपेक्ष थइ, त्रिजा प्रकरणमां सम्यक्त्वना विषयने समज्याविना, अडद मगनो खीचडो भेगो करी, आपणे आप शाहुकारीपणानी पेढीने खोली, सफेद, पीला, अने दिशा, वस्त्रवालाओने, दीपक समर्कितमां बतावी, शाहुकारीपण बतावी दीवं । आते कया प्रकारवाली अमारा ढूँढकोनी धिठाइ ? ते कांइ समजातु नथी ? अने वली आ आठप्रभावकना विषयमांतो, सर्व महापुरुषोथी निरपेक्ष थड, प्रगटपणे लखीने बतावे छे के ।। कोई कहे छे विद्या एटले चमत्कारी विद्या, पण में तेनो समावेश चोथा प्रकारमा करी दीधेलो होवाथी, विद्या एटले विविध ज्ञान, ए अर्थज मने वधारे पसंद छे । आलेखथी वाचक वर्गने विचार करवानो ए छे के, कोइ कहे छे, एम लखीने सर्व महापुरुषोंने छोडी। दीघेला होवाथी, अर्थात् सर्व ग्रंथांना लेखी विपरीत थइ, आपणे आप मति कल्पनानो अ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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