________________
अनुगम, अने नय. । आ चार अनुयोगी व्याख्या करता, प्रथम उपक्रमनी व्याख्यामां, बीजा प्रकारथीछ भेदना अंतरभूतमां, प्रमाण नामनो त्रिजो भेद बताव्यो छे, ते प्रमाण रूपना त्रिजा भेदमां, द्रव्य प्रमाण, क्षेत्र प्रमाण, काल प्रमाण, अने चोथो भाव प्रमाण, कहेलोछे, तेमां चोथा भाव प्रमाणनात्रण भेद करेला छे, १ गुणप्रमाण, . २ नयप्रमाण, । ३ संख्याप्रमाण, । ए त्रणमां जे गुणप्रमाण छे, तेने जीवना ज्ञान, दर्शन, अने चारित्र गुणमांथी, ज्ञानगुणप्रमाण- वर्णन करतां तमारां लखेलां चार प्रमाण कहेलां छे, पण ते तो प्रसंगज जूदी प्रकारनो छे, तेथी तमारो लेखज अयोगपणे थयेलो छे, पण प्रमाणना विषयमा प्रमाणरूपे थयेलो नथी. तेम दिगंबरोना ग्रंथोमां पण तमारां लखेलां चार प्रमाण मानेलां नथी। आवाथूल विषयमां पण जे आटली मोटी भूल थाय, तेतो वासीदामां सांबलं घसडइ जवा जेवू थाय. । अने जैन मतानुयायी सिवाय,.सर्व दर्शन संग्रहना कर्ता माधवाचार्य पण, जैन दर्शननु वर्णन करतां लखेछे के,
ज्ञानं पंच विधं तत्राये परोक्षं प्रत्यक्ष मन्यत् .
एम कहीने प्रमाण विषये एक श्लोक पण लखे छे के. - विज्ञानं स्वपराभासि प्रमाणं बाध बर्जितं;
. प्रत्यक्षंच परोक्षंच द्विधामेय विनिश्चयात् , १ अर्थ-जैनोए, ज्ञान पांच प्रकारचं मानेगुं छे. तेमां आद्यनां बेज्ञान, परोक्ष प्रमाणमां गणेलां छे, अने पाछलांत्रण ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाणमां गणेलां छ. ॥ हवे श्लोकनो अर्थ.-विज्ञान छे ते आपणुं अने बीजार्नु प्रकाश करे एवं बाध रहित प्रमाण छे. मेयना वे प्रकारमा, निश्चयथी ते, प्रत्यक्ष अने परोक्ष छे. ॥ अने छेवट एम लखे छे के अंतर्गत सूक्ष्म भेद आगमोमांथी जोइ लेवा. जवो सर्व दर्शन संग्रह पृष्ट. ३२ मां।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com