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जेने आवी जाय, ते तो कोइदिन जायज नही, पण जे नव दीक्षितने तमो, भाव साधु मानीने वंदना करो छो, तमांथी, घणा एक दीक्षितो तो, छटकी गयेला पण जोवामां आवे छे, तेथी दीक्षाना अवसरमां तेंने खरेखरु भाव साधुपण आवी गयुं हतुं, एम सिद्ध धतुं नथी । वास्ते विचारज करवो पडशे ! अने ते नव दीक्षित साधु ना नामने, साधु पढ़नो नाम निक्षेपज केहवो पडशे ।।
॥ अने नवकारना पदमां जे, आचार्यादिकनी माला फेरवो छोते पण, उत्तम गुणने प्राप्त थइ, जे माहा पुरुषोए, आचार्य पदना नाम निक्षेपने, तेमज आपणामां धारण करेला साधु पदना नाम निक्षेपने, दीपाव्यो छे, तेनाज नामनी माला, ते नवकारना पदमां गण छो, ते सिवाय बीजा कोइ प्रकारनी तमारी सिद्धि थवानी नथी. केमके ते नवकारना पदमा रहेलां, आचार्यादिक साधुपद शुद्धीनां नाम छे, ते कोइ एकज नियमित पुरुषनां नथी, पण अनेक पुरुषो धारण करता आवेला छे, तेथी ते नव दीक्षितमां साधुपदना नामनिक्षेप विनानी, जे कांड तमारी धारणा छे, ते, गुरु ज्ञान विनानीज छे । केमके नवकारमां “ नमो लोए सव्वसा
हुणं " अर्थ एछे के - लोकमां जेटला साधु होय तेटला बधाने, अमारो नमस्कार हो !। आथी ए सिद्ध थाय छे के, जेने भाव साधुपण आवी गयुं छे, तेनो नाम निक्षेप पण, अमारे उपादेय रूपेज छे, ॥
॥ जूबो के जे गृहस्थ. दीक्षा लेवाने आवेलो छे, तेनामां यथार्थ साधुपणा प्राप्त थवानी बुद्धिथी संघनी समक्ष, ते पुरुषमां साधुपदना नामनो, निक्षेपज करीने, वंदना करीये छीए, तेमांथी केटला एक पुरुषो तो साधुना गुणने यथार्थपणे प्राप्त करी ले छे, तो पछी
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