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अमारा पूर्वजो अमारा वारसामां मुकी गया छे, तेनीज सारसंभाळ करी, अमारा आत्मानुं कल्याणज करवाने इच्छीये छीये. ॥
त्यारबाद घणो वखत वीत्या पछी हाल थोडा वखत उपर थयेला, एक लुंका नामना अर्द्ध दग्ध गृहस्थे, आपणी पेट भराइ करवा माटे, केवल बत्री (३२) सूत्रनो पोकार पाडी, आ मूढ पंथ उभो करी, अजान वर्गनी आंख्योए सजडपणे पाटा बांधी, जे अंध कुवामां उतार्या छे, तेमांथी जे पुण्यात्माना, पाटा दूर थाय छे तेओ, आ जैन मार्गने शुद्धपणे जोड़, पाछा रस्ता उपर आरूढ थाय छे, अने जेओना पाटा खुल्ला थया विना अंतर्चक्षु खुल्लां थतां नथी, तेओ बिचारा गुरु ज्ञान प्राप्त थया वगर, इधर तीघर हाथ मारी, मनमां आवे वो अर्थनो अनर्थ करी, फांफां मार्या करे छे, अने छेवट. मां अनेक ठेकाणेथी पाछा पडी, आपणा मनमां अनेक प्रकारना वेदने प्राप्त थाय छे, परंतु हठ धर्मने छोडी सकता नथी, तेमनी दयामय अज्ञान दशा जोड़, अमारु अंतःकरण पण अत्यंत दयामय थइ जाय छे, परंतु ते अंध क्वामांथी. तेमने बाहार काहाडवा समर्थ थइ सकता नथी, तेथी ते पंथ चलावनार पापीनोज दोष गणीये छीये, परंतु ते पंथमां पडेला अज्ञानी जीवोनो, के आचार्यांनो, दोष थयेलो होय, एम अमो मानता नथी, तेम शुद्ध मार्ग दर्शाववा रूप, अमारा लेखथी, जो तेमना हठने लीधे, तेमनुं मन दुभानुं हशे तोपण अमो दूषित थइ सकवाना नथी, एम अमारु मानवं छे, पछी तो ज्ञानी महाराज जे शीकारे ते खरुं.
इति द्वितीय स्थापना निक्षेप विषये तत्त्वातत्त्व
विचार संपूर्ण ॥
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