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पणु छ, । अने ऋज सत्रनय, ते वर्तमानपणाने ग्रहण करनारी छ, तेथी बौद्धनो मत, ऋजु सूत्र नयथी उत्पन्न थयेलो छे. एम समजबु. ।। अने “सर्व खल्विदं ब्रह्म.” एम सर्व संग्रहपणाना हठथी, वेदांती कहे छे, तेथी ते संग्रह नयनो मत छे. ॥ अने आत्माने करवानुं कांइ नथी, एम सांख्यमतवाला कहे छे, ते पण संग्रहनयनो ज मत छे. ॥ अने द्रव्य, गुणादि, सामान्य, विशेष, पदार्थो जुदा जुदा छे, एम हठपणाथी नैयायिक, अने वैशेषिकनामतवाला कहे छे, अने नैगम नयनो पण एज मत छे, तेथी, एबे मत नैगम नयथी उत्पन्न थयेला छे एम समजवं. ॥ अने सर्वज्ञ कोइ नथी, अने शब्द जे अनादि वेद वचन, तनाथीज सर्व प्रवृती चाली रही छे, एम मीमांसक (एटले जैमनि ऋषि) ना मतवाला कहे छे, अने ते शब्द नयनो मत छे, तेथी मीमांसकनो मत शब्द नयथी उत्पन्न थयेलो छे. ॥ अने जैनमत छे ते, सर्व नयोथी गूंथेलो होवाथी सर्व मतोथी श्रेष्टपणे अमो प्रत्यक्षपणाथी जोइये छे. ।। इतिका व्यार्थः ॥
हवे आ लेख उपरथी विचार करवानो ए छे के, जे जे मतवाला एकेक नयने वलगीने रह्या छे ते ते मतवालाने, शास्त्रकारे तो, मिथ्या दृष्टि कहेला छे, पण तेने 'निन्हव' कहेला नथी. । अने निन्हव तो तेने कहेला छे के, जे जैन मतनी सर्व प्रकारथी, बीजी बधी मान्यता राखी, एकाद नयनी मान्यता न राखे तेनेज, शास्त्रकारे, निन्हव कहेला छे. ॥ अर्थात् एकाद नयना विषयमां, भ्रमित थइ हठ पकडीने वेसे, अने समजाव्या पण समजी सके नहीं,
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