Book Title: Dharmdipika Vyakaranam
Author(s): Mangalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala
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________________ (467) अ. पा. सू. पृ. ऋतो रीः। / 4 / 3 / 109 / 201 ऋद् ऋवर्णस्य / 4 / 2 / 37 / 173 ऋदुपान्त्यादकृपिचूदृचः / 5 / 1 / 41 / 273 ऋध ईत् / 4 / 1 / 17 / 194 ऋमतां रीः / 4 / 1 / 15 / 200 ऋरललं कृपोऽकृपीटादिषु / 2 / 3. / 99 / 79 ऋत्वादेरेषां तो नोऽप्रः / 4 / 2 / 68 / 307 ऋवर्णदृशोऽङि / 4 / 3 / 7 / 52 ऋवर्णव्यञ्जनान्ताद् ध्यण् / 5 / 1 / 17 / 269 ऋवर्ण,यूगुंगः कितः / 4 / 4 / 57 / 191 ऋवृध्येऽद इट् / 4 / 4 / 80 / 24 ऋस्मिपूङञ्जशौकगधृप्रच्छः / 4 / 4 / 48 / 193 ऋःशुदप्रः . / 4 / / 4 / 20 / 164 ऋ-ही-घ्रा-ध्रा-त्रोन्दनुद-विन्तेर्वा / 4 / 2 / 76 / 309 6668 ऋतां विडतीर्. / 4 / 4 / 116 / 25 ऋदिच्छुिस्तम्भूचुम्लुचूग्रुचूग्यूग्लु-चूजो वा / 3 / 4 / 65 / 33
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