Book Title: Dharmdipika Vyakaranam
Author(s): Mangalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 796
________________ (485) ___ अ. पा. सू. पृ. नृत्-खन्-रञ्जः शिलिपन्यकट् / / 1 / 65 / 281 नेमादापतपदनदगदवपीवहीश मूचिग्यातिवातिद्रातिप्सातिस्यतिहन्तिदेग्धौ / 2 / 3 / 79 / 42 ननद-गद-पठ-स्वन-क्वणः / 5 / 3 / 26 / 369 न्यभ्युपवेश्चिोत् / 5 / 3 / 42 / 373 न्यायावायाध्यायोद्यावसंहाराव- . हाराधारदारजारम् / 5 / 3 / 134 / 386 पचिदुहेः . / 3 / 4 / (7 / 250 पञ्चम्यर्थहेतो .. / 5 / 3 / 11 / 257 पञ्चम्याः कृग् / 3 / 4 / 52 / 96 ‘पञ्चम्या त्वरायाम् / / 5 / 4 / 77 / 398 पणेर्माने / 5 / 3 / 32 / 370 पद-रुन-विश-स्पृशेषन् / 5 / 3 / 16 / 368 पदान्तरंगम्ये वा / 3 / 3 / 99 / 241 पदास्वैरिबाह्यापक्ष्ये ग्रहः / 5 / 1 / 44 / 274 पराणि कानानशौ चात्मनेपदम्। 3 / 3 / 20 / 2 परानोः कृगः / 3 / 3 / 101 / 241

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