Book Title: Dharmdipika Vyakaranam
Author(s): Mangalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 819
________________ ( 508 ) . अ. पा. . सू. पृ. सृजिशि'कृस्वरात्वतस्तृन्नित्यानिटस्थवः / 4 / 4 / 78 / 14 सृ-जीन राष्ट्रवरप् / 5 / 2 / 77 / 304 सेासे कर्मकर्तरि / 4 / 2 / 73 / 308 सेः स्धां च र्वा / 4 / 3 / 79 / 93 सो धि वा / 4 / 3 / 72 / 93 सोमात् सुगः / 5 / 1 / 163 / 295 सो वा लुक् च / / 3 / 4 / 27 / 217 संयोगादतः / / 4 / 4 / 37 / 133 संयोगादृदत्तः / 4 / 3 / 9 / 22 संयोगादेर्वाऽऽशिष्यः / 4 / 3 / 95 / 17 सः सिजस्तेदिस्योः . . / 4 / 3 / 65 / 18 स्कृच्छृतोऽकि परोक्षायाम् / 4 / 3 / / / 25 स्तम्बाद् घनश्च / 5 / 3 / 39 / 372 स्तम्भू-स्तम्भू-स्कम्भू-स्कुम्भू स्कोः श्नाच स्ताद्यशितोऽत्रोणादेरिट / 4 / 4 / 32 / 9 स्त्रियां क्तिः / 5 / 3 / 91 / 376 स्थाग्लाम्लापचिारिमृजिक्षेः स्नुः। 5 / 2 / 31 / 299 स्थाऽऽदिभ्यः कः / 5 / 3 / 82 / 375

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