Book Title: Dharmdipika Vyakaranam
Author(s): Mangalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 817
________________ (506) . अ. पा. . . . सप्तम्युताप्यो ढे / 5 / 4 / 21 / 263 समननिपन्निषद्शीसुगवि दिचरिमनीणः / 5 / 3 / 99 / 378 समत्यपाभिव्यभेश्वरः / 5 / 2 / 62 / 303 समस्तृतीयया / 3 / 3 / 32 / 228 समिणा सुगः / 5 / 3 / 93 / 377 समुदाङो यमेरग्रन्थे / 3 / 3 / 98 / 240 समुदोऽजः पशौ / 5 / 3 / 30 / 369 समो गमृच्छिप्रच्छिश्रुवित्स्व रत्यर्तिदशः / 3 / 3 / 84 / 238 समो गिरः / 3 / 3 / 66 / 235 समो वा / 5 / 1 / 46 / 274 समः क्ष्णोः / 3 / 3 / 29 / 227 समः ख्यः / 5 / 1 / 77 / 283 सम्प्रतेरस्मृतौ / 3 / 3 / 69 / 235 सम्भावनेऽलमथें तदर्थानुक्तौ / 5 / 4 / 22 / 263 सर्त्यत्तेर्वा / 3 / 4 / 61 / 24 सर्वात् सहश्च / 5 / 1 / 111 / 288 सस्तः सि / 4 / 3 / 92 / 54 सस्मे ह्यस्तनी च / 5 / 4 / 40 / 266

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