Book Title: Dharmdipika Vyakaranam
Author(s): Mangalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala
View full book text
________________ सति / सतीच्छार्थात् सत्यार्थवेदस्याः सत्सामीप्ये सद्वद् वा सनस्तत्रा वा (505) अ. पा. सू. पृ. / 5 / 2 / 19 / 256 / 5 / 4 / 24 / 264 / 3 / 4 / 44 / 221 / 5 / 4 / 1 / 258 / 4 / 3 / 69 / 167 सनि . संनिवेः / 3 / 3 / 17 / 233 सं-नि-वरदः / 4 / 4 / 63 / 312 संनियुपाद यमः / / 5 / 3 / 25 / 369 सनभिक्षाऽऽशंसेरुः / / 5 / 2 / 33 / 300 सन्यङश्च / 4 / 1 / 3 / 191 सप्तमी चोर्ध्वमौहर्तिके . / 5 / 3 / 12 / 258 सप्तमी यदि / 5 / 4 / 34 / 266 सप्तमी यात यातां युम् , यास् / यातं यात, यां यात्र याम, ईत ईयाताम् ईरन् , ईथासू ईयाथाम् ईध्वम्, ईय ईवहि ईमहि / 3 / 3 / 7 / 4 सप्तम्यर्थे क्रियातिपत्तौ क्रियातिपत्तिः / 5 / 4 / 9 / / 10 सप्तम्याः . . / 5 / 1 / 169 / 296
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/1c550f59dc9dea67d936c6ee5d9a6c6b2f365a06a2bb6c49afb2aa26f3f6d8e0.jpg)
Page Navigation
1 ... 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828