Book Title: Dharmdipika Vyakaranam
Author(s): Mangalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 810
________________ (499 ) ___ अ. पा. सू पृ. विंश-पत-पद-स्कन्दो वीप्ताऽऽभीक्ष्ण्ये / 5 / 4 / 81 / 399 विशेषाविरक्षाव्यामिश्रे / 5 / 2 / 5 / 253 वृगो वस्त्रे / 5 / 3 / 52 / 374 वृदिक्षिलुण्टिजलिसकुट्टात् टाकः / 6 / 2 / 70 / 304 वृत्तिसर्गतायन / 3 / 3 / 48 / 232 वृद्भयः स्यसनोः / 3 / 3 / 45 / 79 वृषाश्चाद् मैथुने स्सोऽन्तः / 4 / 3 / 114 / 220 वृष्टिमाने उलुक् चास्य वा / 5 / 4 / 27 / 392 वृतो नवाऽऽनाशी: सिच्चरस्मै च। 4 / 4 / 35 / 25 वेगे सर्तेर्धात् / / 4 / 2 / 107 / 56 वेटोऽपतः / 4 / 4 / 62 / 312 वेत्तिच्छिदभिदः कित् / / 5 / 2 / 75 / 304 वत्तः कित् वेयिवदनाश्वदनूचानम् / 5 / 2 / 3 / 367 वेश्यः / 4 / 1 / 74 / 74 / 4 / 4 / 19 / 74 वेर्विचकत्यस्नम्भकषकसलसहनः / 5 / 2 / 59 / 302 वेः कृगः शब्दे चानाशे / 3 / 3 / 85 / 238 वर्वय्

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