Book Title: Dharmdipika Vyakaranam
Author(s): Mangalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 807
________________ ( 496) __ अ. पा. सू. ... रुधां स्वराच्छ्नो नलुक् च / 3 / 4 / 82 / 150 रुहः पः / 4 / 2 / 14 / 186 रोमन्थाद् व्याप्यादुच्चर्बणे / 3 / 4 / 32 / 218 रोरुपसर्गात् / 5 / 3 / 22 / 369 लघोरुपान्त्यस्य / 4 / / / 4 / 29 लघोर्दीर्घोऽस्वरादेः / 4 / 1 / 64 / 170 लभः / 4 / 4 / 103 / 189 ललाटवातशर्धात् तपानहाकः / 5 / 1 / 125 / 290 लिप्स्यसिध्धौ / 5 / 3 / 10 / 257 लिम्पविन्दः . / 5 / 1 / 60 ! 280 लियो नोऽन्तः स्नेहवे / 4 / 2 / 15 / 181 लिहादिभ्यः / 5 / 1 / 50 / 178 लीलिनोऽर्चाभिभवे चाचाकर्तर्यपि / 3 / 3 / 90 / 239 लीङ्लिनोर्वा / 4 / 2 / 9 / 126 लुप्यम्वृल्लेनत् / 7 / 4 / 112 / 212 लू-धू-सू-खन-चर-सहातेः / 5 / 2 / 87 / 306 लो लः / 4 / 2 / 16 / 182

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