Book Title: Dharmdipika Vyakaranam
Author(s): Mangalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala
View full book text
________________ (473 ___ अ. पा. सू. पृ. गस्थकः / 5 / 1 / 66 / 281 गहोर्जः / 4 / 1 / 40 / 17 गावपुरुषात् स्नः / 5 / 4 / 59 / 393 गापापचो भावे / 5 / 3 / 95 / 377 गापास्थासादामाहाकः / 4 / 3 / 96 / 14 गाः परोक्षायाम् / 4 / 4 / 26 / 99 गायोऽनुपसर्गात् टक् / 5 / 1 / 74 / 282 गुणोऽरेदोत् गुपौधूपविच्छिपणिपनेशयः / 3 / 4 / 1 44 गुप्तिनो गर्दाक्षान्तौ सन् ! 3 / 4 / 5 / 195 गुरुनाम्यादेरनृच्छूर्णोः / 3 / 4 / 48 / 30 गृणोऽपरोक्षायां दीर्घः / 4 / 4 / 34 / 161 गूलुपसदचरजपत्रमदशदह - / 3 / 4 / 12 / 199 गेहे ग्रहः . / 5 / 1 / 55 / 279 गोचरसंचरवतजव्यजखला- / 5 / 3 / 131 / 385 गोहः स्वरे / 4 / 2 / 42 / 72 / 4 / 4 / 59 / 192 ग्रहनश्चभ्रस्जप्रच्छः / 4 / 1 / 84 / 138 ग्रहादिभ्यो णिन् . / 5 / 1 / 53 / 279 ग्ला-हा-च्यः / 5 / 3 / 118 / 382
Page Navigation
1 ... 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828