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एस धम्मो सनंतनो
भी नहीं है।
ऐसा ही समझो कि सागर में लहरें उठी हैं, बड़ी आंधी आई, बड़ा तूफान आया है, फिर लहरें शांत हो गईं। तो क्या तुम यह कहोगे-जब सागर में कोई तूफान न होगा—कि अब तूफान है लेकिन शांत है? तूफान बचा ही नहीं। अब यह कहना कि तूफान है और शांत है, व्यर्थ की बात हुई। शांत होने को अर्थ ही है कि तूफान न रहा। और जब सागर में तूफान उठता है तो अकेले सागर से नहीं उठता, हवाओं के थपेड़े भी चाहिए, आंधियां चाहिए। अकेले से कहीं तूफान उठे हैं! दो चाहिए, द्वंद्व चाहिए, संघर्ष चाहिए।
मन का सारा गुबार, मन की धूल के बवंडर द्वंद्व से उठते हैं। एक तरफ प्रेम-पैर मिलाती चलती घृणा भी साथ है। हां, तुम भूल जाते हो। जब तुम प्रेम से भरते हो, तुम घृणा को भूल जाते हो। जब तुम घृणा से भरते हो, तुम प्रेम को भूल जाते हो। क्योंकि दोनों को एक साथ देखना तुम्हारी सामर्थ्य के बाहर है। जिस दिन दोनों को साथ देख लोगे, दोनों से मुक्त हो जाओगे। ____एक तरफ श्रद्धा करते हो, दूसरी तरफ अश्रद्धा भी पलती है। जिसके भीतर श्रद्धा है, उसी के भीतर अश्रद्धा हो सकती है। __इसे समझने की कोशिश करना। अगर कोई मेरे संबंध में अश्रद्धा से भरा है तो जान लेना कि कहीं पैर मिलाती श्रद्धा भी चलती होगी, उसने अभी देखी नहीं। इसलिए मेरे दुश्मनों को मेरे दुश्मन मत मान लेना, उनमें मेरे मित्र भी छिपे हैं, मौजूद हैं। आज नहीं कल प्रगट हो जाएंगे। जो मेरी निंदा करने का कष्ट उठाता है, उसके भीतर कहीं प्रशंसा छिपी है। अन्यथा निंदा भी व्यर्थ हो जाएगी। कौन निंदा की चिंता करेगा? जरूर कुछ राग है। जरूर मुझसे कुछ जोड़ है, कोई सेतु है।
दुश्मन के भीतर मित्रता छिपी है, मित्र के भीतर दुश्मनी छिपी है। इसलिए तुम किसी को दुश्मन न बना सकोगे अगर तुमने मित्र न बनाया। मित्र बनाकर ही दुश्मन बना सकते हो। मित्रता पहला कदम है।
तो तुम जब आदर से सिर झुकाते हो, तभी तुम्हारे भीतर अनादर भी सिर उठा रहा है। यह साथ ही साथ घट रहा है। इसे तुम जिस दिन समझने लगोगे, उस दिन तुम समझोगे, न तो श्रद्धा है मेरी, न अश्रद्धा है मेरी। उसी दिन तुम दोनों से मुक्त हो जाओगे। ___ और उन दोनों से मुक्त हो जाने पर जो घटना घटती है, वही समर्पण है। उस समर्पण की ऊंचाई श्रद्धा से बहुत ऊंची है, क्योंकि उस समर्पण में श्रद्धा भी पार हो जाती है अश्रद्धा के साथ ही, दोनों के क्षेत्र पीछे छूट जाते हैं।
इसे हम कुछ और तरह से समझें। तुम मुझसे कहते हो, मन अशांत है, शांत होना है। जहां अशांति है, वहां शांत होने की आकांक्षा मौजूद हो जाती है। तुम अशांत होते हो तो शांत होने की आकांक्षा साथ-साथ बढ़ने लगी। जब तुम बहुत अशांत
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