Book Title: Dhammapada 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 292
________________ शब्द : शून्य के पंछी शास्त्रों का गुंजन नहीं। झरनों का कलरव तुम्हें उसमें सुनाई पड़ जाए भला, पक्षियों के गीत उसमें तुम्हें सुनाई पड़ जाएं भला, लेकिन प्रत्यय, धारणाएं, सिद्धांतों की झलक उसमें न होगी। ___माना कि वह भी उन्हीं शब्दों को प्रयोग करने के लिए मजबूर है, जिनका तुम प्रयोग करते हो; वह भी उन्हीं शब्दों का प्रयोग करता है, जिनका प्रयोग शास्त्रों ने किया है; लेकिन उसका अंदाज और है। वह शास्त्रों के शब्दों का ही प्रयोग करने को मजबूर है, लेकिन उन शब्दों का कुछ ढंग, उन शब्दों को प्रयोग करने की कोई प्रक्रिया बुनियादी रूप से भिन्न है। वह तुम्हें कुछ समझाने को कम, तुम्हें कुछ बताने को शब्दों का उपयोग करता है। समझाने को कम, इशारा करने को ज्यादा। वह तुम्हें किन्हीं सिद्धांतों के लिए राजी नहीं कर लेना चाहता, किसी यात्रा के लिए आमंत्रण देता है। बड़ा फर्क है। सिद्धांतों के लिए समझा लेना तो बड़ा सुगम है; तुम जैसे हो, जहां हो, वैसे ही रहोगे, सिद्धांत तुम्हारे लिए और आभूषण बन जाएंगे। तुम थोड़े और समझदार हो जाओगे। तुम्हारी नासमझी और थोड़े श्रृंगार कर लेगी। तुम्हारी मूढ़ता के चारों तरफ तुम और चांद-तारे लटका लोगे। तुम्हारा अज्ञान और थोड़ा छिप जाएगा; और वस्त्रों में, वसनों में छिप जाएगा। तुम बदलोगे नहीं। बुद्ध पुरुष जब बोलते हैं तो तुम्हें मिटाने और तुम्हें नया जन्म देने को। वे तुम्हारी कब्र भी खोदते हैं और तुम्हारे लिए गर्भ का निर्माण भी करते हैं। उनके शब्द खतरनाक भी हैं, वे तुम्हें मारेंगे। और उनके शब्द अमृत जैसे भी हैं, क्योंकि वे तुम्हें पुनः जिलाएंगे। उनके शब्द में सूली भी है और पुनर्जीवन भी। अगर तुमने सुना तो उनका एक शब्द भी तुम्हें उपशांत कर जाएगा। तो अगर तुम किसी तार्किक की बात सुनने जाओ तो तुम और उद्विग्न होकर लौटोगे; तुम और परेशान होकर लौटोगे। तुम वैसे ही परेशान थे, वह तुम्हें और परेशान कर जाएगा। यह भी हो सकता है, तुम उससे राजी भी हो जाओ, लेकिन तब भी तुम शांत न हो सकोगे। उससे राजी होने में भी बेचैनी होगी, परेशानी होगी, कांटे चुभते रहेंगे, जैसे कहीं कुछ गलत हुआ है। साफ भी नहीं होता कि क्या गलत हुआ है, लेकिन कहीं कुछ गलत हुआ है। क्योंकि शांति तो हृदय की बात है, मस्तिष्क की नहीं। उसने तो तुम्हारे मस्तिष्क को सहलाया। उसने तो तुम्हारे मस्तिष्क को भुलाया। उसने तो तुम्हारे मस्तिष्क में कुछ और विचार, कुछ और शब्द डाले। तुम वैसे ही बोझिल थे, तुम और थोड़े बोझ से भर गए। लेकिन जब तुम किसी बुद्ध पुरुष का वचन सुनकर लौटते हो तो हो सकता है, तुम उससे राजी भी न होओ, लेकिन बेचैन न हो सकोगे। हो सकता है, तुम उसके पीछे चलने की तैयारी भी न दिखाओ, तब भी तुम पाओगे, जैसे कोई स्नान हो गया। जैसे धूल से भरे, यात्रा के थके, तुम किसी झरने में डुबकी लगा आए। पसीने से 279

Loading...

Page Navigation
1 ... 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314