Book Title: Dhammapada 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 298
________________ शब्द : शून्य के पंछी व्यक्ति के पास जाना। जाते ही लगेगा, तुम्हारा सारा जीवन व्यर्थ है। जिसके पास तुम्हें अपना जीवन व्यर्थ लगे, समझना कि वहां कोई सार्थकता खिली है; उसकी ही तुलना में तो तुम्हें व्यर्थता का बोध हुआ। ऐसा यह संसार है जैसे सेमर फूल दिन दस के व्यवहार में झठे रंग न भल कबीर का वचन है। जैसे सेमर फूल बड़ा शुभ्र मालूम होता है, ऐसा यह संसार है। दिन दस के व्यवहार में—पर ज्यादा देर टिकता नहीं। दिन दस के व्यवहार में झूठे रंग न भूल बिखर जाता है। हवा का जरा सा झोंका-और सेमर का फूल बिखरा; हजार खंडों में टूट जाता है, हजार दिशाओं में बह जाता है। जिस किसी व्यक्ति के पास आकर तुम्हें यह अनुभव में आ जाए कि मेरा जीवन व्यर्थ, क्षणभंगुर; मैंने अब तक जो कमाया, कमाया नहीं, गंवाया; अब तक जैसे मैं चला, चला नहीं, भटका; अब तक जिसको मैंने संपत्ति समझी, वह विपत्ति थी; और अब तक जिसको मैंने वरदान समझा, वह अभिशाप था; जिसे मैंने प्रेम जाना, वह प्रेम नहीं था; जिसे मैंने सत्य माना, वह सत्य नहीं था। . जब किसी व्यक्ति के पास आकर तुम्हें ऐसा अनुभव होने लगे तो घबड़ाकर भाग मत जाना। मन तो कहेगा, भाग चलो, हट चलो; हम अपने अंधेरे में बेहतर। मन तो कहेगा, यह और कहां की झंझट में पड़ते हो? यह यात्रा बड़ी मालूम पड़ेगी। मन तो कहेगा, जैसे चलते थे, परिचित रास्ता है, उसी पर चलते रहो। मन लकीर का फकीर है। मन नए के पीछे जाने में घबड़ाता है। लेकिन जब भी तुम कभी कोई सार्थक वचन सुनोगे तो नया ही मालूम होगा, ताजा मालूम होगा-सद्यस्नात! और उसी के कारण तो उपशांति मिलेगी। उसी ताजगी की वर्षा तुम पर होगी तो मन उपशांत होगा। . साहस रखना। सदगुरु को खोजने की फिक्र मत करना, तुम सुनने की क्षमता रखना। और जब सुनने में कहीं तुम्हारे पास कोई सार्थकता का अनुभव आने लगे तो घबड़ाकर भागना मत। क्योंकि सदगुरु सार्थक दिखेगा तो तुम निरर्थक दिखोगे। __ अब इसे थोड़ा ठीक से समझ लेना। अगर गुरु पर ध्यान रखोगे तो उपशांति मिलेगी। अगर अपने पर ध्यान करोगे तो बड़े अशांत हो जाओगे। जब भी कोई चीज सार्थक दिखाई पड़ेगी तो पृष्ठभूमि में बहुत कुछ व्यर्थ हो जाएगा। ___ तुम कंकड़-पत्थर बीने बैठे थे और मैंने तुम्हें बताया कि ये कंकड़-पत्थर हैं; मैंने तुम्हें हीरा दिखाया। तो तुम्हारे पास दो विकल्प हैं : या तो तुम कंकड़-पत्थर छोड़ो, हीरे की खोज में लग जाओ। अगर तुमने ऐसा चुना तो मन तत्क्षण शांत हो जाएगा कि जितने जल्दी छूटे उतना ही ठीक; जब छूटे तभी ठीक; जब जागे तभी सुबह; और दिन न खोए, सौभाग्य। 285

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