Book Title: Dhammapada 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 302
________________ शब्द : शून्य के पंछी है, मैं हूं, वह तुम बिलकुल नहीं हो। तुमने जिसे अब तक आत्मा माना है, वह आत्मा है ही नहीं। ये भी खयाल तुम्हें दूसरों ने दे दिए हैं। __किसी ने कहा, तुम सुंदर हो, और तुमने अपने को सुंदर मान लिया। तुमने अपना चेहरा अभी देखा ही नहीं। किसी ने कहा, तुम बुद्धिमान हो, तुमने अपने को बुद्धिमान मान लिया। तुमने अपना चेहरा अभी देखा ही नहीं। फिर एक भूल दूसरी भूल में ले जाती है, फिर दूसरी भूल तीसरी भूल में ले जाती है, फिर भूलों का अंबार लग जाता है। और जो तुमसे कहते हैं, तुम सुंदर हो, उनका प्रयोजन कुछ और होगा। ____ मैंने सुना है, तीन उचक्के एक दुकान पर गए। भीड़ लगी थी, मिठाई की दुकान थी। उस गांव में सबसे जाहिर और प्रसिद्ध दुकान थी। वे भीड़ में तीनों खड़े हो गए। फिर एक ने कहा कि अब बड़ी देर हो गई रुपया दिए, न मिठाई आती है, न बाकी पैसे वापस लौट रहे हैं। उस दुकानदार ने आंख उठाई, उसने कहा, कैसा रुपया! झगड़ा-झांसा शुरू हो गया। वह आदमी कह रहा था कि मैंने आठ आने की मिठाई मांगी, तो आठ आने वापस चाहिए। न मिठाई मिली है, न आठ आने वापस मिले हैं। उसने कुछ रुपया वगैरह दिया नहीं था। दूसरे उचक्के ने कहा कि नहीं, यह हो ही नहीं सकता, क्योंकि यह दुकानदार बड़ा ईमानदार आदमी है। ऐसा कभी हुआ ही नहीं, तू गलती में है। बड़ा झगड़ा-झांसा मच गया। जब यह सब चल रहा था, तब उस दूसरे उचक्के ने कहा कि मियां लाला! कहीं इस झंझट में मेरा रुपया मत भूल जाना। अब सेठ जरा मुश्किल में पड़ा कि अगर वह कहे कि तूने भी रुपया नहीं दिया, तो यह सारी भीड़ मेरे ही खिलाफ हो जाएगी कि तुम्ही एक सेठिया सराफ, सारी दुनिया चोर-बेईमान! और यह आदमी तो बड़ा भला आदमी है, यह तो कह ही रहा है कि सेठ बड़ा भला आदमी है, ईमानदार है; यह कभी ऐसा कर ही नहीं सकता है। इसके पहले कि कुछ वह बोले, तीसरा उचक्का बोला कि यह तो ठीक है, इनका तो रुपये-रुपये का मामला है, मेरा पांच का नोट है। उस सेठ ने सोचा कि अब जल्दी ही हां कह देना ठीक है, नहीं तो यह पूरी भीड़ खड़ी है, कोई कुछ भी कहने लगे, कोई सौ का ही नोट बताने लगे। उसने कहा, भाई बिलकुल ठीक है; तुम तीनों ले लो, मुझसे भूल हो गई है। तुमने कभी गौर किया, जो तुमसे कहता है, तुम बड़े सुंदर, तुम बड़े बुद्धिमान, तुम बड़े तेजस्वी, तुम बड़े ईमानदार, उसके कुछ प्रयोजन होंगे, उसके कुछ अपने निहित स्वार्थ होंगे। तुम चकित होओगे कि संसार में दूर जिनसे तुम्हारा कोई लेना-देना है, उनके स्वार्थ होंगे वह तो ठीक ही है, जो तुम्हारे बिलकुल निकट हैं, उनके भी स्वार्थ हैं। मां भी अपने बेटे से कहती है कि तुझसे सुंदर कोई भी नहीं है। सभी मां ऐसा मानती हैं। उसमें भी स्वार्थ है। स्वार्थ यह है कि मेरा बेटा असुंदर हो कैसे सकता 289

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