Book Title: Dhammapada 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 301
________________ एस धम्मो सनंतनो मानव के अंतर में जो कुछ उत्तमतर है उसके अभिव्यंजन का जीवन यह अवसर है सुख में वह केवल जो इस तप में तत्पर है अगर दिशा ठीक हो, दृष्टि साफ हो, तो अभी जो एक बेबूझ पहेली मालूम होती है, वह बड़ी सारपूर्ण हो जाती है। ___मगर यह सार्थकता शुरू होगी, तुम्हारा हाथ स्वयं पर पड़ जाए तो; तुम अपनी विजय कर लो तो। जिसने अपने को जीता, उसका सारा जीवन संगतिपूर्ण हो जाता है। फिर यहां कोई असंगति नहीं रह जाती; फिर सारी चीजें अपने आप ठीक स्थान . पर खड़ी हो जाती हैं। और हर चीज का उपयोग हो जाता है। तब यह जीवन एक व्यर्थ की दौड़-धूप नहीं होती, आत्म-अभिव्यंजना होती है। तब यह जीवन ऐसा ही दुख-स्वप्न नहीं होता—एक पीड़ा, एक निरर्थक श्रम-वरन सार्थक होने लगता है। __ जिसने भीतर की थोड़ी सी भी समझ पाई, जिसने भीतर अपने पैर गड़ाए, स्वभाव में जड़ें पकड़ी, जिसने आत्मा को थोड़ा जाना, स्वयं को पहचाना, अपनी पहचान हुई, उस क्षण के साथ ही यह सारा संसार अपना रूप बदल लेता है। ठीक उलटी कथा हो जाती है। अभी जीवन के पीछे मौत छिपी है, तब मौत के पीछे जीवन छिपा मिलता है। अभी हर फूल के पीछे कांटा छिपा है, तब हर कांटे के पीछे फूल मिलता है। अभी हर सुख के पीछे दुख मिलता है, तब हर दुख के पीछे सुख मिलने लगता है। तुम क्या बदले, सब बदल जाता है। ऐसा लगता है कि तुम अभी शीर्षासन कर रहे हो, तो सब उलटा दिखाई पड़ता है, क्योंकि तुम उलटे खड़े हो। तुम सीधे खड़े हो जाओ, सब सीधा हो जाता है। सारी बात तुम्हारे होने पर निर्भर है। 'संग्राम में हजारों मनुष्यों को जीतने से भी उत्तम संग्राम-विजेता वह है, जो एक अपने को ही जीत ले।' __ कठिनाई क्या है? अड़चन क्या है? बुद्ध पुरुष चिल्लाते रहे शिखरों पर खड़े होकर, छप्परों पर खड़े होकर; अड़चन क्या है? क्यों हम सुनते नहीं? अड़चन कहीं कुछ भारी होनी चाहिए; इतनी भारी होनी चाहिए कि हम बुद्ध पुरुषों की फिक्र छोड़ देते हैं और अपना गोरखधंधा जारी रखते हैं। ___ अड़चन यह है कि जिसे तुमने अभी समझा है कि तुम हो, इसे गंवाना पड़ेगा, अगर उसे पाना हो, जो कि तुम वस्तुतः हो। तुम्हारा नाम, तुम्हारा धाम, तुम्हारा पता-ठिकाना, तुम्हारी आइडेंटिटी, तुम्हारा तादात्म्य, सब झूठा है। जो भी तुमने जाना 288

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