Book Title: Dhammapada 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 297
________________ एस धम्मो सनंतनो भिक्षु हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फिर वह मस्जिद हो कि मंदिर, इससे क्या फर्क पड़ता है? असली कसौटी हाथ में आ गई कि जहां सब शांत होने लगता है, जहां हृदय की वीणा शांति के स्वर बजाने लगती है, जहां रोआं- रोआं पुलकित होने लगता है; जहां लगता है, धूल झड़ी, स्नान हुआ; जहां लगता है, ताजगी मिली; जहां लगता है, पोषण मिला; जहां लगता है, जीवंत होकर लौटे, ज्योति मिली - जैसे किसी ने तुम्हारे प्राणों के दीए को, ज्योति को उकसा दिया हो। 'हजार-हजार पद भी व्यर्थ हैं, एक सार्थक पद श्रेष्ठ है, जिसे सुनकर मनुष्य उपशांत हो जाता है।' 'संग्राम में हजारों मनुष्यों को जीतने वाले से भी उत्तम संग्राम - विजेता वह है, जो एक अपने को ही जीत ले।' पहली बातः उसे खोज लेना, जिसके पास कुछ अर्थ की संपदा हो । क्योंकि जब तक तुम्हें खजाना न दिखाई पड़े, तब तक तुम्हें अपने भीतर के खजाने की खोज, प्यास पैदा न होगी। हो भी कैसे ? जब तक तुमने किसी को नाचते न देखा हो, तो नृत्य का भाव कैसे उठे ? जब तक तुमने किसी को मस्ती में डोलते न देखा हो, तब तक मस्त होने की कामना कैसे उठे ? जब तक तुमने किसी को शांति का, शून्य का अवतार अनुभव न किया हो, तब तक तुम्हारे भीतर शांत होने की कल्पना कैसे उठे ? शांत होने की कल्पना कैसे पंख फैलाए ? जिन लोगों के बीच तुम रहते हो, उन्हें तुम अपने से ज्यादा अशांत पाते हो। सुबह से अखबार पढ़ते हो, संसार भर के उपद्रव, चोरी, बेईमानी, हत्या, सब पढ़ते हो; पढ़-पढ़कर तुम्हें लगता है, इससे तो हमीं भले । अखबार पढ़ने का राज ही यही है; इतने रस से लोग पढ़ते हैं, उसका कुल कारण यही है कि पढ़कर ऐसा लगता है कि इससे तो हमीं भले । जिस संसार में तुम्हें ऐसा लगता हो कि इससे तो हमीं भले, वहां तुम्हारी प्रगति नहीं हो सकती; वहां तुम्हारी गति नहीं हो सकती। ऊंट को पहाड़ के करीब आना होगा, तभी उसे पता चलेगा, अरे! मैं बहुत छोटा हूं। पृथ्वी पर जब भी कोई बुद्ध पुरुष चलता है तो जो भी उस पहाड़ के करीब आने की हिम्मत रखते हैं - हिम्मत रखनी पड़ती है, क्योंकि ऊंट को बड़ा डर लगता है पहाड़ के पास जाने में। यह बात ही माननी कि कोई मुझसे बड़ा हो सकता है, यह स्वीकार करना ही कठिन मालूम होता है। हम तो हजार उपाय करके, हजार सहारे लेकर माने रखते हैं कि हम बड़े हैं। ऐसी कहीं जगह, ऐसा कोई स्थान, जहां यह प्रतिमा खंडित हो जाए, जहां यह भाव गिर जाए, दुखदायी मालूम होता है; वहां हम जाते ही नहीं । चले भी जाएं, आंखें बंद कर लेते हैं, बचाकर निकल जाते हैं। तो पहली तो बात बुद्ध कहते हैं, जहां अर्थ का फूल खिला हो, ऐसे किसी 284

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