Book Title: Dhammapada 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 278
________________ चरैवेति चरैवेति रास्ता दो। तुम्हारा अनुग्रह प्रसाद को आमंत्रित करता है। चौथा प्रश्नः पिछले प्रश्नोत्तर के समय कुछ बेबूझ घटना घटी, जिसे न समझ सकता हूं और न समझा ही सकता हूं। गुरु के प्रति अहोभाव कैसे प्रगट करूं, यह भी समझ में नहीं आता। और भीतर से चाहता हूं कि मेरी यह नासमझी बनी रहे। ठीक है, नासमझी स्वीकार हो तो सरलता बन जाती है। नासमझी से जो छूटना चाहता है, वह चालाक बन जाता है। नासमझी में जो डूब जाता है, वह भोला-भाला हो जाता है, निर्दोष हो जाता है। नासमझी पाप नहीं है। समझदारी में मैंने बहुत पाप देखा है, नासमझी में नहीं देखा। नासमझी बड़ी निर्दोष है। ___ नासमझ रहो। नासमझी के बड़े सुख भी हैं, क्योंकि नासमझ को बहुत कुछ मिलता है, जो समझदार को कभी नहीं मिलता। क्योंकि समझदार तो पाने की चेष्टा में होता है और समझदार तो दावेदार होता है कि मिलना चाहिए। समझदार तो संघर्ष करता है। नासमझ जानता ही नहीं, कैसे संघर्ष करे! जानता ही नहीं कि मैं कैसे पा सकूँगा? मेरे कृत्य से क्या होगा? नासमझ सिर्फ प्रतीक्षा करता है, धैर्य रखता है। नासमझ कहता है, जब तुम्हारी कृपा होगी, होगी। मैं मूढ़ करूं भी तो क्या? बहुत कुछ-घटता है, अकृत घटता है, प्रसाद बरसता है। नासमझ तुम बने रहना। अज्ञान में बुराई नहीं है। ज्ञानियों को भटकते देखा है। ज्ञान संसार देता है, अज्ञान परमात्मा ने दिया है। इसे कभी तुमने सोचा-इस तरह सोचा? अज्ञान परमात्मा ने दिया है, ज्ञान संसार के अनुभव से आता है, पढ़ने-लिखने से आता है, सुनने-सोचने से आता है, अज्ञान लेकर आए हो तुम। अज्ञान यानी कोरी किताब, जिस पर कुछ भी लिखा नहीं; जिस पर काली स्याही के धब्बे न लगे। तुम इस किताब को ऐसे ही रख देना, कुछ लिख मत लेना। ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया खूब जतन से ओढ़ी कबीरा बड़े जतन से रखना इस किताब को; इसे ऐसी की ऐसी रख देना। सूफियों की एक किताब है : द बुक आफ द बुक्स। उसमें कुछ लिखा नहीं है, वह खाली है। खाली किताब है। पुश्त दर पुश्त, एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को उस किताब को देती गई है। सूफी उसे पढ़ते भी हैं। सुबह खोलकर बैठ जाते हैं। कुरान, 265

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