Book Title: Dhammapada 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 283
________________ एस धम्मो सनंतनो किसी और को हुई। इस बात को तुम अपनी संपदा न बनाओ, अन्यथा ज्ञान निर्मित होने लगा। और ज्ञान बाधा है। आखिरी प्रश्न: ध्यान में जड़ता आने लगी है, विचार भी खास तंग नहीं करते, मगर पूरा होश भी नहीं रहता है। यह कैसी स्थिति है और मुझे क्या करना चाहिए? ध्या न के बहुत पड़ाव हैं। पहला पड़ावः जब कोई व्यक्ति ध्यान करना शुरू करता है तो मन इतना बेचैन होने लगता है, जितना ध्यान के पहले भी न था। इतनी अशांति आने लगती है, जितनी कभी न आई थी। डर लगता है, यह तो और उलझन बढ़ी; सुलझाने आए थे, यह तो और उपद्रव गले पड़ा। चाहते थे शांति, यह तो और अशांति आ गई। लेकिन यह इसलिए होता है इसलिए नहीं कि अशांति बढ़ती है—सिर्फ इसलिए होता है कि तुम्हारा बोध बढ़ता है। अशांति तो तुम्हारे भीतर पड़ी है, भरी पड़ी है, बाजार भरा है, राशि लगी है। लेकिन तुम इतने व्यस्त हो कि तुम इस पर ध्यान नहीं दे पाते। जब तुम ध्यान करते हो तो तुम भीतर की तरफ मुड़ते हो, तो पहली दफा तुम अपने सारे उपद्रव से परिचित होते हो। ___तो पहले पड़ाव पर तो बड़ी घबड़ाहट आ जाती है, बड़ी बेचैनी बढ़ जाती है। विचार विक्षिप्त की भांति दौड़ने लगते हैं। शोरगुल बढ़ता मालूम पड़ता है। उपद्रव बढ़ता मालूम पड़ता है। और ऐसा लगता है, यह क्या हुआ? हम तो ध्यान से आकांक्षा किए थे शांत होने की, और भी अशांत हो गए। तब घबड़ाहट आती है, मन होता है, लौट जाएं। लेकिन अगर तुम करते ही चले गए तो धीरे-धीरे यह अशांति खो जाती है; तब मन शांत होने लगता है। यह जो दूसरी घड़ी आती है—ध्यान में जड़ता आने लगी है—यह जड़ता नहीं है, लेकिन विचार की गति क्षीण हो रही है। तो तुमने अब तक गति ही एक जानी है : विचार की। चैतन्य की गति का तुम्हें कोई पता नहीं है। और जब विचार की गति कम होने लगती है, तो लगता है, कहीं जड़ तो नहीं हो रहा! यह क्या हो रहा है? अब शांत हो रहे हो तो जड़ता मालूम पड़ती है। . ऐसा ही समझो कि तुम सदा बाजार में रहे; हिमालय पर चले जाओगे तो बड़ी ऊब मालूम होगी, कुछ मजा नहीं आता; कुछ सार ही नहीं मालूम पड़ता, यह तो सब जड़ मालूम होता है। बाजार की आदत वहां भी पीछा करेगी। तुम बाजार चाहते 270

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