Book Title: Dhammapada 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 281
________________ एस धम्मो सनंतनो कह भी नहीं पाते कि क्या हआ; बता भी नहीं पाते। जो बताने और कहने में बहुत कुशल हैं, उसके कारण ही बाधा हो जाती है। __और ध्यान रखना, जिन्होंने कहा भी है, वे भी कहां कह पाए हैं। मैं तमसे कितना कह रहा हूं, कहां कह पाता हूं? जो कह पाता हूं, वह कुछ और है; जो कहना चाहता था, वह कुछ और है। रोज फिर कोशिश करता हूं कि चलो, आज फिर सही, कल हारे तो आज कहेंगे; फिर पाता हूं कि बात...। जो गीत गाना है, वह गाया नहीं जा सकता, लेकिन उसे गाने की चेष्टा करनी पड़ेगी। शायद पूरा-पूरा गीत न भी गाया जा सके, उसकी थोड़ी लय भी तुम तक पहुंच जाए; शायद पूरी कड़ियां तुम्हारे पास तक उतर भी न सकें, कुछ खंड-खंड अंश भी पहुंच जाएं; शायद तुम्हारा पेट भर भी न सके, लेकिन तुम्हारे कंठ तक भी स्वाद पहुंच जाए तो भी कुछ कम नहीं; इसलिए कहने की चेष्टा चलती है। कह तो । कोई भी नहीं पाया है। यह घटना ही ऐसी है कि इसे कोई कह नहीं सकता। जो कहा जा सके, वह सत्य नहीं। जो सत्य है, उसे कहा नहीं जा सकता। यह कहने-सुनने के पार है। _ 'गुरु के प्रति अहोभाव कैसे प्रगट करूं, यह भी समझ में नहीं आता।' प्रगट हो गया! प्रगट करने की कोई जरूरत भी नहीं। बस, खयाल आ गया अहोभाव का, बात हो गई। कुछ बैंड-बाजे थोड़े ही बजाने पड़ेंगे, कुछ शोरगुल थोड़े ही मचाना पड़ेगा। तुम्हारे मन में खयाल आ गया, बात हो गई। अहोभाव आ गया, बात हो गई। बताने की थोड़े ही बात है, अहोभाव भाव की बात है। प्रार्थना से जो उठा है पूत होकर प्रार्थना का फल उसे तो मिल गया अगर प्रार्थना से तुम नहाकर उठ आए, बात हो गई। प्रार्थना से पवित्र होकर उठ आए, बात हो गई। प्रार्थना से भरकर लौट आए, बात हो गई। प्रार्थना से जो उठा है पूत होकर प्रार्थना का फल उसे तो मिल गया प्रार्थना का कोई और फल थोड़े ही है, प्रार्थना ही फल है। इसलिए नारद भक्ति-सूत्र में कहते हैं, भक्ति फलरूपा है। भक्ति स्वयं फल है। प्रार्थना की, फिर प्रतीक्षा मत करना फल की; नहीं तो चूके जा रहे हो। बात ही गलत हो गई। प्रार्थना ही फल है। कल प्रार्थना घटी। तुमने सुना, कुछ भीतर हुआ, कोई चोट पड़ी, तुम नहा गए। उसी नहाने में अहोभाव भी स्वभावतः उठ आता है, स्वाभाविक फूल है प्रार्थना का। कहने की कोई जरूरत भी नहीं। ___ और नासमझ ही बने रहना, ताकि यह घटता रहे। यहीं खतरा खड़ा होता है। अब चूंकि यह घट गया, डर है कि तुम समझदार हो जाओगे। तुम कहोगे, हो गया, 268

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