Book Title: Dhammapada 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 277
________________ एस धम्मो सनंतनो झांककर न देखा था, देखा। क्षणभर बाद कहने लगा, घबड़ा रहा हूं! और ज्यादा नहीं। उसे लगा कि मैं कुछ कर रहा हूं। किए से तो यह होता ही नहीं; यह तो अकृत है। मैं कुछ भी नहीं कर रहा हूं। तुम्हारी ज्योति मेरे दर्पण से टकराकर लौट जाए, बस! ज्योति तुम्हारी है, तुम्हीं को लौटा रहा हूं। ज्योति तुम्हारी है, तुम्हीं को वापस दे रहा हूं। अनेक साधक आकर मुझे कहते हैं कि बड़ी हैरानी की बात है, रात हम सोचकर आते हैं कि यह प्रश्न पूछना है, सुबह आप उत्तर दे देते हैं। कोई मैं तुम्हारी रातों का हिसाब नहीं रखता, तुम क्या-क्या सोचते हो; मुश्किल में पड़ जाऊंगा। लेकिन तुम जब मेरे सामने मौजूद होते हो तो तुम्हारा प्रश्न मुझसे टकराता है और लौटने लगता है। उस लौटते में ही तुम्हें उत्तर मिलने लगते हैं। उत्तर तुम्हारे भीतर हैं। मुझे बस तुम्हें तुम्हारे ऊपर वापस फेंक देना है। __ मंगलकारी अनुभव हुआ है। सौभाग्य मानना, परमात्मा के प्रति आभारी होना, अनुग्रह मानना। जो अचानक प्रसाद उपलब्ध हुआ है, उसे बिना धन्यवाद स्वीकार मत कर लेना। नहीं कि परमात्मा को धन्यवाद की जरूरत है; तुम्हारे धन्यवाद देने से परमात्मा को कुछ भी नहीं मिलता, लेकिन तुम्हारे धन्यवाद देने से तुम्हारे प्रसाद पाने की संभावनाएं बढ़ती जाती हैं। तुम जितना धन्यवाद देते हो, तुम जितने अहोभाव से भरकर धन्यवाद देते हो, उतने तुम खुलते जाते हो; उतने तुम उपलब्ध होते जाते हो; उतना ज्यादा तुम्हारे भीतर होने लगेगा। धन्यवाद का अर्थ है कि जो मिला है, उसको तुमने ऐसे ही उपेक्षा से स्वीकार नहीं कर लिया है। क्योंकि उपेक्षा का मतलब यह होगा कि शायद तुम पात्र भी नहीं थे। उपेक्षा का अर्थ यह होगा कि तुम अर्थ भी समझ न पाए। उपेक्षा का यह अर्थ होगा कि तुम्हारे भीतर अनुग्रह का भाव भी नहीं है; शायद तुम्हें जरूरत ही न थी, शायद तुम तलाश में ही न थे। ___ उपेक्षा का भाव तुम्हें बंद कर देगा। और प्रसाद की संभावना बंद हो जाएगी। इसलिए नहीं कि तुम्हारे उपेक्षा के भाव से परमात्मा नाराज हो गया, जो नाराज हो जाए, वह परमात्मा क्या! जो धन्यवाद की मांग करे, वह परमात्मा क्या! न वहां धन्यवाद की मांग है, न वहां नाराज होने का कोई सवाल है। परमात्मा बस जैसा है, वैसा है; सदा वैसा है—एक रंग, एक रूप। लेकिन तुम्हें फर्क पड़ जाएगा। तुमने धन्यवाद दिया, तुम और खुले द्वार हो जाओगे; और प्रसाद को अंगीकार कर पाओगे। इसलिए छोटी सी भी किरण आए तो तुम ऐसे नाचना, जैसे सूरज आ गया है; जल्दी ही सूरज भी आ जाएगा। एक सूरज आए तो ऐसे नाचना, जैसे हजार सूरज उतर आए हैं; जल्दी ही हजार सूरज भी उतर आएंगे। 264

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