Book Title: Dhammapada 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 275
________________ एस धम्मो सनंतनो अदृश्य का अगर कोई भी थोड़ा सा कतरा आ जाए, तो आंखें चौंधिया जाएंगी। डांवाडोल हो जाओगे, जैसे सिर पर पत्थर मार दिया गया हो। दिन में, भरे दिन में चांद-तारे दिखाई पड़ जाएंगे। तब मन हजार-हजार व्याख्याएं करना चाहेगा, ताकि जो घटा है, उसको मन समझा ले, अपनी परिभाषा में बांध ले। अगर मन की परिभाषा में बंध जाए तो ठीक, फिर मन निश्चित हो जाता है, क्योंकि तब बात मन का हिस्सा हो गई। अगर मन की परिभाषा में न बंधे, जैसा कि हो रहा है...। ___ 'वर्षों पहले जब पहली बार मैंने आपको देखा, तब मेरी आंखें चौंधिया गयीं; और उसी दिन से एक ज्योति हर क्षण मेरी दृष्टि के मध्य प्रज्वलित रहती आई है।' वह ज्योति सदा से प्रज्वलित थी, उस दिन तुम्हें दिखाई पड़ गई। उस चौंधियाने के क्षण में तुम भीतर मुड़ गए। मुझसे मुठभेड़ करके तुम अपने पर फेंक दिए गए। . जैसे कोई दीवाल में गेंद को मारे तो गेंद लौट आती है; ऐसे ही तुम...मुझसे मुठभेड़ हो गई तुम्हारी। तुम्हारी आंख मुझसे टकराकर वापस लौट गई। वापस लौटती आंख ने तुम्हें वह दिखा दिया, जो सदा से भीतर जल ही रहा है। सबकी ज्योति जली हुई है, बुझी कभी नहीं। बुझ जाए तो फिर कोई जला न सकेगा। बुझ जाए तो तुम होओगे कैसे? तुम हो, यह काफी प्रमाण है कि ज्योति जली है। लेकिन तुम भीतर नहीं जाते अपने; तुम बाहर-बाहर जाते हो। उस दिन अचानक तुम्हारी आंख चोट खाकर भीतर लौट गई। उस लौटने की यात्रा में, उसे अपनी ज्योति से मिलन हो गया। वह ज्योति तुम्हारी है; मेरा उससे कुछ लेना-देना नहीं। मैंने ज्यादा से ज्यादा एक दीवाल का काम किया, जिस पर तुम्हारी आंख की गेंद टकराई और वापस हो गई। मैंने तुम्हें तुम पर वापस फेंक दिया। इससे तुम चकाचौंध से भी भर गए, चकरा गए, चक्कर खा गए, लेकिन तुम्हें अपनी ज्योति खयाल में आ गई। और एक बार खयाल में आ जाए तो फिर तुम उसे भुला न सकोगे; फिर वह बार-बार आने लगेगी। अनुभव इतना अभूतपूर्व है, अनुभव इतना प्यारा है, स्थान ऐसा एकांत है कि कभी-कभी, दृष्टि के परावर्तन में ही दिखाई पड़ता है। अपनी गहराई को उस दिन तुमने छुआ। उस चकाचौंध के क्षण में तुम्हें अपनी थोड़ी सी पहचान हुई। और जो जान लिया, अब वह तुम्हारे भीतर खड़ा है। अब तुम जानते हो। अब जब भी आंख भीतर जाएगी, वह ज्योति तुम्हें उपलब्ध हो जाएगी। तुम आंख बंद करोगे, उपलब्ध हो जाएगी। ___ अब मन चेष्टा कर रहा है समझाने की कि ज्योति-व्योति कुछ भी नहीं, मन का धोखा न हो! आंख की खराबी न हो! ___ आंख तुम्हारी ठीक हो गई है, खराब पहले रही होगी। आंख तुम्हारी साफ हो 262

Loading...

Page Navigation
1 ... 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314