Book Title: Dhammapada 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 273
________________ एस धम्मो सनंतनो तो मैंने उनकी एक कविता उनको सुनाई। उसकी दो पंक्तियां हैं रुग्ण होना चाहता कोई नहीं रोग लेकिन आ गया जब पास हो तिक्त औषध के सिवा उपचार क्या शमित होगा वह नहीं मिष्ठान्न से यह उनकी कविता है। मैंने कहा, महाराज! यह आपने काहे को लिखी होगी? यह तुम्हारी डायबिटीज से निकली है। रुग्ण होना चाहता कोई नहीं रोग लेकिन आ गया जब पास हो तिक्त औषध के सिवा उपचार क्या शमित होगा वह नहीं मिष्ठान्न से अब कोई इसको पढ़ेगा तो समझेगा, जिसने लिखा है, जानकर लिखा है। यह जिसने लिखा है, जानकर नहीं लिखा; वे खुद ही जीवनभर पीड़ित रहे। अभी-अभी तो वे चल बसे, शरीर छोड़ दिया; लेकिन बड़ा दुख उनको डायबिटीज का नहीं था, बड़ा दुख मिष्ठान्न छूट जाने का था। वे जब भी आते, मुझसे पूछते, ऐसी कोई तरकीब नहीं? कोई ऐसी विधि मुझे बताएं-आप तो इतनी विधियां खोजते हैं कि मिष्ठान्न भी खाता रहूं और डायबिटीज सताए न। सदियां बीत जाएंगी, यह कविता तो रहेगी, किसी को याद भी न रहेगा कि दिनकर को डायबिटीज थी। लोग इसको बड़ा मूल्यवान वचन समझेंगे-मूल्यवान वचन है। __ तुम क्या कहते हो, इससे पक्का पता नहीं चलता कि तुम क्या हो। तुम कहो, अहं ब्रह्मास्मि और वहां केवल अहं विराजमान हो सिंहासन पर। तुम समझदारी की बातें करो और केवल नासमझी को छिपाने का उपाय हो। तुम विनम्र बन जाओ और वह केवल अहंकार को आभूषण देने की व्यवस्था हो। ___तो मैं तुमसे कहता हूं-बेशर्त! जो कुछ तुम्हारे पास है-पूरा जोड़, रत्तीभर नहीं छोड़ता, पूरा-पूरा अहंकार है। इसलिए चिंता में मत पड़ो कि क्या छोड़ना है? सभी छोड़ना है, सभी के पार जाना है; फिर जो शेष रह जाएगा...। और जरूर शेष रह जाएगा, क्योंकि तुम्हारे पास कुछ ऐसा भी है, जो तुमसे ज्यादा है। तुम्हारा जोड़ अहंकार है, लेकिन तुम्हारे भीतर कुछ ऐसा भी है, जो तुम्हारे जोड़ से ज्यादा है, तुमसे पार है। तुम्हारे भीतर तुमसे विराटतर कुछ है। तुम्हारे भीतर तुमसे गहरा कुछ है। तुम्हारे भीतर तुमसे ऊंचा कुछ है। तुम्हारे भीतर ऐसा कुछ है, जो तुम्हारे मैं से अछूता है, कुंआरा है। पर उसको कोई नाम न दें तो अच्छा। अगर नाम दें, अहंकार उसी नाम की आड़ में छिप जाएगा। कहो आत्मा, वह उसी के पीछे बैठ जाएगा। वह कहेगा कि चलो, मैं आत्मा हूं, खतम हुई बात। 260

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