Book Title: Dhammapada 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 271
________________ एस धम्मो सनंतनो मैं ब्रह्म हूं, इसमें मैं असली चीज है, ब्रह्म हो या न हो। ब्रह्म तो भ्रम भी हो सकता है, लेकिन मैं हूं और ब्रह्म भी मेरा है। उपनिषद के ऋषि ने कहा था, चूंकि मैं नहीं हूं, इसलिए ब्रह्म। जोर ब्रह्म पर था; मैं, मेरा क्या होना न होना! भाषा की बात थी। बुद्ध ने कहा, आत्मा भी नहीं, ब्रह्म भी नहीं। तुम्हारे हाथ में कुछ भी पकड़ने को न छोड़ा। इससे ज्यादा कठोर शिक्षक कभी पैदा नहीं हुआ, क्योंकि इससे बड़ा करुणा का स्रोत ही कभी पैदा नहीं हुआ। इसने तुम्हें शरण न छोड़ी, सब छीन लिया; कहा, सब धर दो, सब रख दो-तुम्हारा शरीर भी नहीं, तुम्हारा मन भी नहीं, तुम्हारे विचार भी नहीं, तुम्हारी आत्मा, तुम्हारे परमात्मा, तुम्हारे शास्त्र, वेद, कुछ भी नहीं-तुम सब रख दो। तुम जो भी रख सकते हो, वह रख ही दो अलग; तब वही बच जाएगा, जो तुम रख ही नहीं सकते अलग, क्योंकि वह तुम्हारा स्वभाव है। उस शुद्ध स्वभाव का नाम निर्वाण है; . अकृत। वह करने से नहीं मिलता, करने से तो अहंकार ही भरता है। मुझे कई ऐसे संन्यासी मिलने आ जाते हैं, जिनकी श्वास-श्वास अहंकार से भरी है। अकड़कर चलते हैं-अहं ब्रह्मास्मि की गूंज ! लेकिन उनकी नाक देखो, उनकी आंख देखो, उनके नथुने देखो, सब के भीतर अहंकार बड़ी जोर से श्वास लेता मालूम पड़ता है। दो संन्यासियों को एक मंच पर बिठाना मुश्किल है। कौन ऊपर बैठे? कौन नीचे बैठे? जो नीचे बैठ जाए, वह नीचा हो जाएगा। जिनकी बुद्धि अभी यहां अटकी हो...इनकी पूजा चलती है। एक बड़े संन्यासी, जिनके बहत शिष्य हैं, उन्होंने मझे निमंत्रण दिया तो मैं गया। वे अपने मंच पर बैठे थे। उनके पास ही एक छोटा मंच था, उस पर एक दूसरे संन्यासी बैठे थे। जब मेरी उनसे बात होने लगी तो उन्होंने कहा कि देखें, आप देखते हैं यहां कौन बैठा हुआ है? मैं देख तो रहा हूं, कोई बैठे हुए हैं, लेकिन कौन हैं, मैं जानता नहीं। कहने लगे कि ये इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे, मगर बड़े विनम्र आदमी हैं। इनकी विनम्रता देखते हैं? सदा मुझसे नीचे बैठते हैं। वे बड़ी मंच पर बैठे हैं, वे उनसे जरा मझौल मंच पर बैठे हैं, और बाकी लोग सब जमीन पर बैठे हैं। मैंने कहा कि ये आपसे तो नीचे बैठे हैं, मगर हम लोगों से ऊपर बैठे हैं। इनको एक गड्ढा खोदकर बिठाओ; यह न चलेगा। और मैंने कहा, यह तो मैं मान लिया कि ये विनम्र हैं, आपके संबंध में क्या? ये तो नीचे बैठे हैं, आप ऊपर चढ़े बैठे हैं। अगर इसी वजह से ये विनम्र हैं कि नीचे बैठे हैं, तो आपके संबंध में क्या! ___मैंने कहा, फिर बताने की क्या जरूरत कि चीफ जस्टिस थे? अब संन्यासी हो गए। जो मर ही गया, उसकी बात क्या करनी! लेकिन आप मुझसे यह कह रहे हैं कि मेरे अनुयायियों में चीफ जस्टिस भी हैं हाईकोर्ट के। और चीफ जस्टिस भी हाईकोर्ट के मुझसे नीचे बैठते हैं। मैंने कहा, इनको मैं देख रहा हूं गौर से; ये कानूनी 258

Loading...

Page Navigation
1 ... 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314