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उपशांत इंद्रियां और कुशल सारथी
गई हैं, जहां मालकियत पूरी हो गई, जहां आदमी दुख के ही पार न गया, सुख के भी पार गया, जहां आनंद बरसा, जहां शांति घनीभूत हुई, जहां सब तरह की उत्तेजना क्षीण हो गई, जहां अब कोई तरंगें नहीं उठतीं, मन निस्तरंग हुआ, चेतना ऐसे हो गई, जैसे झील पर कोई लहर न हो, ऐसी अवस्था जहां भी घटती है, सारा अस्तित्व ही नमस्कार करता है । सारा अस्तित्व ही ईर्ष्यालु होता है। कौन न ऐसा होना चाहेगा ! देखती है मुझे हैरानी से तारों की निगाह
उस बुलंदी पे उड़ा जाता है तौसन मेरा
ऐसी घड़ी आती है चैतन्य की, जब कि उन ऊंचाइयों पर उड़ती है चेतना कि जहां तारे भी ईर्ष्या से, हैरानी से चौंककर खड़े रह जाते हैं ।
देखती है मुझे हैरानी से तारों की निगाह उस बुलंदी पे उड़ा जाता है तौसन मेरा
'सुंदर व्रतधारी, तादि पृथ्वी के समान नहीं क्षुब्ध होने वाला और इंद कील के समान अकंप होता है, ऐसे पुरुष को कर्दम - रहित जलाशय के समान संसार नहीं होता है।'
'सुंदर व्रतधारी... ''
क्या कारण पड़ा होगा बुद्ध को सुंदर भी जोड़ने में? व्रतधारी कहने से काम न चलता था ? बात तो काफी हो जाती थी : व्रतधारी ।
लेकिन बुद्ध को सुंदर जोड़ना पड़ा है। क्योंकि व्रत भी असुंदर हो जाते हैं अगर अहंकार उनके पीछे पलता हो । अहंकार प्रत्येक वस्तु को कुरूप कर जाता है | व्रतों का भी एक सौंदर्य है, लेकिन वह तभी, जब व्रत घटते हों, घटाए न जाते हों। जब सारथी कोड़ा मारकर घोड़े को न चलाता हो । सारथी का इशारा समझकर घोड़ा चलता हो, तब सौंदर्य है । सारथी के पीछे-पीछे चलता हो; सारथी को कहना भी न पड़ता हो और पीछे चलता हो, ऐसा प्रेम बन गया हो सारथी और घोड़े के बीच ।
शरीर पीछे आता हो छाया की तरह । शरीर छाया है आत्मा की । इसे समझना । जैसे शरीर की छाया बनती है— जब तक तुम्हें आत्मा का पता नहीं है, तब तक तुम्हारे लिए शरीर है और शरीर की बनती छाया है - जिस दिन तुम्हें आत्मा का चलेगा, उस दिन तुम पाओगे, अरे! आत्मा है; आत्मा की छाया शरीर है; आत्मा की छाया की छाया बाहर पड़ रही है । जिस दिन तुम्हें भीतर का पता चलेगा, शरीर छाया की तरह · तुम्हारे पीछे चलने लगता है । छाया को चलाना तो नहीं पड़ता । तुम कोड़े तो नहीं चलाते कि छाया पीछे आए; छाया आती है। जब तक तुम्हें अपना पता नहीं है, तभी तक अड़चन है ।
'सुंदर व्रतधारी ... ।'
कौन है सुंदर व्रतधारी ? जिसके व्रत समझ से आविर्भूत हुए, प्रज्ञा से आविर्भूत हुए; जिसने जीवन को जाना, देखा, पहचाना, समझा, जीया; जो जीवन में परिपक्व
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