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एस धम्मो सनंतनो
हुआ; जिसका फल पका और गिरा; कच्चा नहीं टूटा; जिसके जीवन में व्रत आए हैं।
तुम कभी-कभी व्रत ले लेते हो। तुम जाकर मंदिर में व्रत ले लेते हो कि ब्रह्मचर्य का व्रत लेता हूं। तुम व्रत क्यों लेते हो? अगर तुम्हें समझ आ गई है तो व्रत की कोई जरूरत नहीं, तुम ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो गए हो। अगर समझ नहीं आई तो व्रत तुम अपने ऊपर जबरदस्ती करने को ले रहे हो, ताकि भय रहे कि मंदिर में व्रत लिया है, समाज के सामने व्रत लिया है, किसी साधु पुरुष के सामने व्रत लिया है। अब कैसे तोड़ें?
तुम किसलिए व्रत लेते हो? मेरे देखे गलत लोग ही व्रत लेते हैं। ठीक लोग व्रत में जीते हैं, लेने का कोई सवाल नहीं। लेने का मतलब ही यह है कि तुम अपने भीतर द्वंद्व पैदा कर रहे हो। तुम कहते हो, बहुत क्रोध किया, अब जाकर कसम खा लेते हैं, अब क्रोधन करेंगे।
लेकिन यह कसम की जरूरत क्यों है? क्या अभी भी क्रोध करने की संभावना है? क्या तुम सोचते हो कल तुम फिर भी क्रोध करोगे, अगर कसम न लो? तो कसम लेने से कल आने वाला क्रोध कैसे रुकेगा? कसमों से क्रोध के रुकने का क्या लेना-देना है? अगर कसमों से क्रोध रुकते होते तो सभी के रुक सकते थे। सभी कसम ले लेते; कसम लेने में क्या बनता-बिगड़ता है?
नहीं, तुम अपने साथ एक खेल खेल रहे हो। क्रोध किसलिए आता है? जब भी अहंकार को चोट लगती है, क्रोध आता है। अब तुम उसी अहंकार का उपयोग क्रोध को दबाने के लिए कर रहे हो। तुम कहते हो, जाकर समाज के सामने, समूह के सामने, व्रत ले लेंगे खड़े होकर कि अब हम क्रोध न करेंगे। अब यह तुम्हारे अहंकार की अकड़ होगी। कि अगर तुमने क्रोध किया तो लोग कहेंगे, अरे! गिरते हो? पतित होते हो? ___एक आदमी संन्यासी हो जाता है, मुनि हो जाता है, तो लोग जुलूस निकालते हैं, शोभायात्रा निकालते हैं, बड़ा उत्सव मनाते हैं। यह तरकीब है। यह तरकीब है कि अब लौटना मत; नहीं तो जूते पड़ेंगे। क्योंकि यह शोभायात्रा का उलटा हो जाएगा।
मेरे पास संन्यासी आते हैं, मैं उनको चुपचाप दे देता हूं। वे कहते हैं, आप कुछ इसके लिए उत्सव वगैरह नहीं करते? ___ मैंने कहा, इसलिए ताकि भागने की तुम्हें सुविधा रहे। तुम कल छोड़ना चाहो तो कोई अड़चन न आए। मैं तुम्हारे संन्यास को अहंकार नहीं बनाना चाहता। यह तुम्हारी मौज है। तुमने लिया, तुम छोड़ना चाहो, तुम छोड़ सकते हो। यह कोई व्रत नहीं है, यह कोई कसम नहीं है, यह तुम्हारा बोध है। अगर बोध ही खो गया और फिर कसम ही हाथ में रह गई तो क्या करोगे।
विनोबा जी ने एक नवविवाहित युवक और युवती को ब्रह्मचर्य का व्रत दिलवा
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