Book Title: Dhammapada 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 264
________________ चरैवेति चरैवेति जीए? कुछ भीतर लबालब, कुछ भरापन तो चाहिए ही; अन्यथा आदमी जीए किसलिए? किस कारण जीए? एक मस्ती तो चाहिए ही; अन्यथा चलना बोझ हो जाता है, उठना बोझ हो जाता है। किसलिए उठो? क्या प्रयोजन है? जीवन एक सौभाग्य नहीं मालूम होता प्रेम के बिना, जीवन एक दुर्भाग्य बन जाता है। तब लोग जीवन को घसीटते हैं। तब जीवन तुम्हारे साथ लंगड़ाता है। तब जीवन का आशीर्वाद तुम्हें उपलब्ध नहीं होता, उलटे ऐसा लगता है कि किस दुष्ट परमात्मा ने यह मजाक की! फियोदोर दोस्तोवस्की का प्रसिद्ध उपन्यास है : ब्रदर्स कर्माझोव। अनूठा! अपने तरह का अकेला! विश्व-साहित्य में फिर वैसी दूसरी कोई कृति नहीं। उसमें एक नास्तिक पात्र है, जो जीवन से ऐसा उदास, इतना बुझा-बुझा हो गया है कि वह एक दिन परमात्मा की तरफ, आकाश की तरफ आंख उठाकर कहता है कि मुझे तुझमें भरोसा तो नहीं; मैं जानता तो नहीं कि तू है, लेकिन अगर कहीं तू हो और मुझे मिल जाए तो मैं यह जीवन तुझे वापस लौटाना चाहता हूं। यह जो तूने मुझे जीवन में प्रवेश का अधिकार दिया, यह तू वापस ले ले। न होना भला इस होने से। प्रेम के बिना होने से न होना भला हो जाता है। और अगर प्रेम हो तो न होना भी एक गहन होने को अपने भीतर समा लेता है। होने की तो बात ही छोड़ो, न होना भी सुखद हो जाता है। होना तो परिपूर्ण आनंद हो जाता है, न होना भी सौभाग्यपूर्ण हो जाता है। प्रेम जीवन की ज्योति है। प्रेम के बिना घर ऐसे है, जैसे दीया बुझ गया हो और अंधेरा घर! प्रेम के बिना जीवन ऐसे है, जैसे वीणा के तार टूट गए हों, संगीत से खाली और शून्य वीणा ! प्रेम के बिना जीवन ऐसा है, जैसे वृक्ष तो हो और फूल न आए हों और फूलों ने आने से इनकार कर दिया हो-बांझ वृक्ष! प्रेम जीवन को भरता है। प्रेम के बिना जीवन की प्याली खाली है; प्रेम हो तो भर जाती है। _और जब तक प्रेम न हो, तब तक तुम्हें लगता ही रहेगा-खाली...खाली... खाली...! एक उदासी, एक संताप, एक चिंता, व्यर्थ की भागदौड़! कहीं कोई सार नहीं, कहीं कोई अर्थ नहीं, कहीं कोई लय नहीं। जैसे किसी ने मजाक किया हो; जैसे परमात्मा शुभ न हो, शैतान हो; जैसे उसने मजाक किया हो, तुम्हें सताने के लिए पैदा किया हो; कि तुम किलबिलाओ, कि तुम परेशान होओ, कि तुम पीड़ित होओ और वह दुष्ट आततायी ऊपर से बैठकर इस खेल को देखे! प्रेम जैसे ही तुम्हें छूता है-जैसे सुबह की ठंडी हवा आ जाए, पुलक-पुलक ताजा हो जाए; जैसे रात चांद उग आए, सब तरफ चांदी फैल जाए। सुबह की आज जो रंगत है वह पहले तो न थी क्या खबर आज खरामां सरे-गुलजार है कौन आज मेरे बगीचे से कौन गुजर गया? 251

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