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उपशांत इंद्रियां और कुशल सारथी हो लो। वे कहते हैं, मस्ती वगैरह से हमें कुछ लेना-देना नहीं, हमें शांत होना है। मैं उनसे कहता हूं, पहले नाच तो लो। वे कहते हैं, आप भी क्या बातें कर रहे हैं ? हम शांत होने आए हैं। उनको मैं कैसे समझाऊं कि शांति जो है, वह कोई सीधा लक्ष्य नहीं है।
शांति का अर्थ है: तृप्ति, परितृप्ति, परितोष । शांति का अर्थ है : ऐसी गहन तृप्ति कि अब वासना की कोई लहर नहीं उठती ।
जैसे जब भूख लगी हो तो कैसे शांत होओगे, कहो ? जब भूख लगी हो, कैसे शांत होओगे ? जब पेट में आग जलती हो, कैसे शांत होओगे ? जब प्यास लगी हो और कंठ जलता हो और चारों तरफ रेगिस्तान हो, कैसे शांत होओगे ?
लेकिन जब कंठ को जल मिल जाए, क्षुधा शांत हो तो एक परितोष छा जाए। ऐसी ही भीतर की भी क्षुधा जब शांत होती है और भीतर की अतृप्ति जाती है, आनंद बरसता है, तब शांति आती है।
बुद्ध के पास शांति है जरूर, क्योंकि भीतर कोई नाच उठा है । बुद्ध के पीछे चलने वाले चूक गए बात; उन्होंने समझा, शांत होना है।
खयाल रखना, परिणाम को कभी भी लक्ष्य नहीं बनाया जा सकता; परिणाम तो परिणाम है।
जैसे समझो कि सौ डिग्री तक पानी गर्म होता है तो परिणाम में भाप अपने आप बन जाती है। अब अगर तुम भाप बनाने की सीधी ही कोशिश में लग जाओ और यह भूल ही जाओ कि सौ डिग्री तक पानी के गर्म हुए बिना भाप नहीं बनती तो तुम मुश्किल में पड़ जाओगे। तुम बड़ी अड़चन में पड़ोगे । भाप बनेगी कैसे ? भाप परिणाम है। कारण मौजूद कर दो, परिणाम अपने आप घट जाता है।
आनंद की सौ डिग्री जब पूरी होती है, जब आनंद का अहोभाव होता है, तब शांति होती है। अशांति क्या है, इसे समझने की कोशिश करो। अशांति यही है कि कहीं कोई तृप्ति नहीं। अशांति यही है कि जहां भी जाते हैं, भूख मिटती नहीं, प्यास मिटती नहीं। अशांति यही है कि जो भी करते हैं, कुछ फल हाथ लगता नहीं; इसलिए अशांत हैं।
अगर ऐसे में शांत हो गए तो बड़ी कठिनाई होगी; फिर तो तुम खोज से वंचित ही रह जाओगे । परमात्मा की बड़ी अनुकंपा है कि तुम्हें शांत नहीं होने देता। शांत तो तुम तभी हो सकोगे, जब मंजिल आ जाए। शांत तो तुम तभी हो सकोगे, जब आनंद की खोज हो जाए।
यह अशांति शुभ है, इसे मिटाने की कोशिश मत करना; इसे समझने की कोशिश करना। यह अशांति सूचक है। यह तो खबर देती है कि तुम चूक रहे हो । यह तो इंगित करती है, यह तो थर्मामीटर है। यह तो बताती है भर कि तुम चूक रहे हो कहीं । कहीं जीवन गलत जा रहा है। प्यास कहीं जा रही है और जिस जल को
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