Book Title: Devdravya Author(s): Mohanlal Sakarchandji Publisher: Mohanlal Sakarchandji View full book textPage 6
________________ पण अंग उधार धीरवू नहीं, पण तेनुं व्याज सोना रुपाना दागीना उपर अयवा जागीर उपर धीरीने उत्पन्न करवू. मीलकत के जागीर जेनी उपर देवद्रव्य धीरवामां आवे ते एक जणना नामथी धीरवू नहीं. आ प्रकारे थवाथी कोइ रीते तेमांथी खवाइ जवानुं बनी शकशे नहीं. __.4 श्राद्धजीतकल्पमां कहुं छे के, देवद्रव्यनी व्यवस्था करनारने एक रुपैयार्नु परचुरण जोइतुं होय अने ते पोतानी पासेना देवद्रव्यनी सीलकमां होय तो पण त्रीजा माणसने पासे राख्या शिवाय तेणे काढवू नहीं. आ बाबत जेने त्यां घरदेरासर होय तेने माटे पण लागु पडे छे. आ कथन उपरथी विचारवं जोइए के ज्यारे रुपीओ नांखीने परचुरण लेवा माटे पण एकलाने सत्ता नथी अथवा व्याजबी नथी तो पछी बीनरजाए मोटी रकमो पोताना उपयोगमा लेवी ते तो केवु गेरव्याजवी तेमज दोषित कहेवाय ? . 5 द्रव्यसीत्तरी प्रकरणमां देवद्रव्य, नीच वेपारो करी, तथा नीच धंधादारीओने धीरीने वधारवानी चोख्खी ना कही छे, तेम ज केटलाएक ग्रंथमा श्रावकने धीरवा माटे पण ना कहेली छे. हा कहेली होय तेवो कोइ पण ग्रंथ दीठामां आवतो नथी.न धीरवातुं कारण मुख्य तो एज छे के श्रावके श्रावक पासे ते द्रव्यनी उघराणी लाज शरमने लीधे करी शकाय नहीं अने तेथी ते द्रव्य डुबी जाय.Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58