Book Title: Devdravya
Author(s): Mohanlal Sakarchandji
Publisher: Mohanlal Sakarchandji
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________________ (11) प्रभावक एसे जीव जो देवद्रव्यनुं रक्षण करे छे तो तीर्थकरपणा प्रत्ये पामे छे. 13 वळी तेज प्रकरणमां कडं छे के:- . जिणपव्वयणवुहिकर, पभावगं नाणदंसणगुणाणं / भख्खंतो जिणदव्वं, अनंतसंसारीओ होइ॥ __अर्थ-जिन प्रवचननी वृद्धिनो करनार, अने ज्ञान दर्शन गुणनो प्रभावक एवो छे तोपण जो देवद्रव्यनुं भक्षण करे तो ते अनंतसंसारी थाय छे. ___आबे गाथा उपरथी एटलं तो समजाशे के गमे तेटली बीजी पुन्यकरणी करे परंतु जो देवद्रव्य भक्षण करे छे तो तेनी पुन्यनी करणी निरर्थक थाय छे अने अनंत संसार वधे छे तो पण एटलं समजवान बाकी रहेलं छे के शक्तिवान् छता कोइपण श्रावक अलग रहे, बीलकुल संभाळ न करे अथवा उवेखी मुके तो तेने पण शास्त्रकारे प्रायश्चित्त कहेलं छे. यदुक्तं श्रीसंबोधसिरत्ती प्रकरणे:भख्खे जो उवेख्खेइ, जिणदव्वं तु सावउ / पन्नाहीणो भवेजीवो, लीप्पइ पावकम्मुणा // अर्थ-देवद्रव्यनुं भक्षण करे अथवा तो बगाड यतो होय

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