Book Title: Devdravya
Author(s): Mohanlal Sakarchandji
Publisher: Mohanlal Sakarchandji

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Page 44
________________ (43) खोटी करकसर नहिं करतां पोतपोताना गजा प्रमाणे तेवा उत्तम प्रसंगे तो जरुर वस्त्र शुद्धि माटे पण काळजी राखवी उचितज छे. जेओ साधन संपन्न होय (सारी स्थितिमा होय) तेमणे तो संसारिक कार्यमा वपरातां वस्त्रोथी जूदां जूदां धार्मिक कार्यों माटे खास करीने सारां शुद्ध वस्त्रो अलायदांज राखी ममतारहित तेनो यथायोग्य उपयोग करवोज जोइए. जेओ वस्त्रशुद्धिना नियमनो भंग करो जेवां तेवा मलीन वस्खो वडेज सर्व व्यवहार चलावे छे तेमने तेमनी गंभीर भूलने लीधे शरिरादिकना आरोग्य माटे पण वधारे सहन करवू पडे छे. एम विचारी शाणा माणसो पण वस्त्रशुद्धि माटे पण वधारे काळजी राखे छे. त्रीजी चित्त शुद्धि-प्रबळ राग द्वेष रुप, कषाय, मिथ्यात्व अने अज्ञानता रुप मळने दूर करी देवाथी चित्त शुद्धि थइ शके छे अथवा भय, द्वेष अने खेदरुप दोषने दूर करवाथी पण चित्त शुद्धि थइ शके छे. परिणामनी चंचळता एज भय, सद्गुण के सद्गुणवाळी वस्तु उपर अरुचि आववी ते द्वेष अने कल्याणकारी क्रिया करता थाकी जइए ते खेद; मतलब के जे जे अंतर विकारोवडे चित्तशुद्धि थती अटके छे, ते ते विकारोने विवेकवडे समजी दूर करवाथी चित्त शुद्धि सहेजे संपजे छे. राग देष अने मोह प्रमुख महाविकारोथी सर्वथा मुक्त थयेला वीतराग परमात्माए बतावेलां सघळां आत्मसाधननो मूळ हेतु अंतर शुद्धि करवानो ज छे. ते वात सहु कोइ आत्मार्थी भाइ व्हेनोए खास

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