Book Title: Devdravya
Author(s): Mohanlal Sakarchandji
Publisher: Mohanlal Sakarchandji

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ . उक्त चारे दोषोनुं स्वरूप गुरु गम्यथी विशेषे जाणी जेम बने तेम निर्दोष-दोषरहित धर्मकरणी करवा खप करवो जेमज जेओ विधि रसिक होई सेववामां आवती धर्मकरणी- रहस्य गुरुगम्य मेळवी ते प्रमाणे आदर सहित आचरण करता होय तेवा उत्तम पुरुषोनो समागम मेळवी तेमनी शुद्ध निर्दोष धर्म करणी निहाळी पोतानी धर्म करणीमां चलावी लेवाती भुलो सुधारवाना खपी थर्बु बहु जरुरनुं छे. जे भाग्यवंत जनो यथार्थ विधि युक्त धर्मकरणी करे छे, तेओ धन्य कृतपुन्य छे. तेमज जेओ पोते यथाशक्ति निर्दोष धर्म करणी करवा उपरांत अन्य योग्य जनोने तेमां सहाय करे छ, निर्दोष करणीनी अनुमोदना करे छे-तेनी मुक्ति कंठथी प्रशंसा करे छे. यावत् तेनी प्राणांते निंदा तो कदापि करताज नथी, तेओ पण धन्य छे. निर्दोष धर्मकरणीनी तेमज निर्दोष करणी करनारनी निंदा करनारने निकाचित कर्म बंध थाय छे जेथी तेने बहुज संसार परिभ्रमण करवु पडे छे; तेथी तेवी निंदा तो सर्वथा वर्जवा योग्य छे. जेमने शरुआतमां धर्मकरणी करतां सहज स्खलनारुप अ. 'विधि दोष लागे छे, परंतु तेनो यथार्थ विधि जाणवा अने आदरवा से खप करे छे तेओ पण शुभ भावना योगे सारो लाभ मेळवी

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58