Book Title: Devdravya
Author(s): Mohanlal Sakarchandji
Publisher: Mohanlal Sakarchandji

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Page 46
________________ गुरुनी पूजा भक्ति के स्तुति करवी उचित छे. आ प्रमाणे विधि साचववानो हेतु पोतानी भाव भूमिका-हृदयशुद्धि करवी एज छे. पूर्वोक्त भय, द्वेष अने खेद दोषोने दूर करवाथी भाव भूमिकानी शुद्धि थइ शके छे. जेम जिन चैत्यादिक निर्माण करतां भूमिका शुद्धि करवा माटे भूमिमां रहेलां शल्यादिक दूर करी देवामां आवे छे, तेम हृदय भूमिमां रहेलां राग द्वेषादि (कषाय ) शल्य, मिथ्यात्व शल्य, तेमज पूर्वोक्त भयादिक शल्यो अवश्य दूर करवां ज जोइए. त्यारेज यथार्थ अंतर शुद्धि थयेली गणाय छे.. जेम शल्य रहित शुद्ध भूमिका उपर चणावेला प्रासादमां सुखे निवास करी शकाय छे तेम जेमां अंतर शल्य दूर थयां छे एवी हृदय शुद्धिवाला सज्जनो ज सहजानंदयां निमम रही शके छे. खरेखलं सुख हृदय शुद्धिमां ज छे. तेथी जेम सत्वर हृदय शुद्धि थाय तेम पवित्र लक्ष सहितज हरेक प्रसंगे आत्मार्थी जनोए प्रवतवानुं छे. गाडरिया प्रवाहे प्रवर्तवाथी कशुं आत्महित नथी. तेथी जेवी रीते हृदय शुद्धि थवा पामे तेवा अंतर लक्ष-उपयोग सहितज सकळ धर्म करणी करवी हितकर छे. बाकी लोक रंजनार्थ के अंध परंपराए वर्तवामां कई पण अधिक हित नथी ज. .. पांचमी पूजा उपगरण शुद्धि-श्री तीर्थराजने भेटती वखते शुद्ध देवगुरुनी सेवा भक्तिना प्रसंगे जे कई उपगरणो-पूजा सामग्रीनी जरूर पड़े, ते अति उदार दीलथी सारी संभाळपूर्वक उत्तम प्रकारनी मंगलिक द्रव्यो वडे निपजावेल होय तो चित्तनी प्रस

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