Book Title: Devdravya
Author(s): Mohanlal Sakarchandji
Publisher: Mohanlal Sakarchandji
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________________ (46) 6 अक्षत-अखंड (अणीशुद्ध) तांदुलवडे आत्माने स्वस्तिकल्याणकारी स्वस्तिक रचनार आत्मा उत्तम भावना योगे रत्नत्रयीरुप प्रभुना मार्गने पामी चार गतिने छेदी, अंते सिद्धि गतिपामी शके छे. स्वस्तिक ( साथिओ) रचतां प्रभु समीपे उपर जणावेलि ज प्रार्थना शुभ भावना सहित करवी जोईए. 7 नैवेद्य-अनादि देहाध्यास ( देह ममता ) योगे जीवने जातजातनां खान पानमा रति लागेली छे तेथी विरक्त थवाने प्रभु समीपे विध विध जातनां पकवान, रसोई ढोकी एवीज प्रभु प्रार्थना करवानी छे के प्रभु ! अनादि पुद्गलानंदीपणुं तजावी अमने अणाहारी पद प्राप्त करावो. 8 फळ-सरस उत्तम जातिनां विध विध फळ प्रभु पासे ढोकी एवी प्रार्थना करवानी छे के हे जगदीश ! आप अमारां अनादि जन्म जरा मरण संबंधी अनंतां दुःख निवारी अमने अक्षय मुखमय मोक्ष सुखनी बक्षीस आपो ! आवी रीते संक्षेपथी हेतु सहित समजावेली अष्ट प्रकारी पूजा हरेक श्रद्धालु भाई ब्हेनोए प्रतिदिन करवा नियम करवो जोईए. उक्त द्रव्य पूजा का बाद चैत्यवंदन प्रमुख वडे प्रभुना गुणग्राम करी आत्माने तल्लीन करवो युक्त छे. .. छठी द्रव्य शुद्धि-प्रभु पूजादिक निमित्ते जोईतां बधां पूजोपमरण न्याय युक्त द्रव्यथी मेळववा प्रयत्न करवो जोईए. म

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