Book Title: Devdravya
Author(s): Mohanlal Sakarchandji
Publisher: Mohanlal Sakarchandji
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________________ (17) आ विषय एटलो मोटो अने गहन तेमज गंभीर छे के तेना.संबंधमां जेटलं लखीए तेटलं थोडं छे, माटे आ विषय पूरो करतां अगाउ देवद्रव्यनुं भक्षण करनारने आ भवे अने परभवे केवां दुःखो भोगवां पडे छे, केवी केवी नीच योनिमां जन्म धारण करवो पडे छे, केवा प्रकारे भवभवने विषे मृत्यु प्राप्त थाय छे ते, तेमज देवद्रव्यनी वृद्धि करवाथी यावत् केवी रीते पदवी अने मोक्ष सुख प्राप्त थाय छे ते बताववा माटे श्राद्धविधि ग्रंथमाथी सागर शेठनुं दृष्टांत आ नीचे लख्युं छे, जेथी सर्व सज्जनो ते दृष्टांतने पोताना हृदयमां को। राखी तेवा अकार्यथी निरंतर दूर रहेशे. सागर शेठ- दृष्टांत. श्रीसाकेतपुर नामे नगरने विषे सागर नामे शेठ परमभक्तिवंत सुश्रावक हतो. तेने सर्वे श्रावकोए योग्य जाणीने चैत्यद्रव्य सार संभाल तथा योग्य रीते व्यय करवा निमित्ते आप्यु भने कयु के, तमारे देरासरनी अंदर सूत्रधार एटले सुतार विगेरे कारीगरो पासे कामकाज करावq अने तेने मजुरीना पैसा रीतसर आपवा. सागर शेठने आ प्रमाणे सुप्रत थवाथी लोभने वशे करीने ते मुतार विगेरे कारीगरोने रोकडं द्रव्य आपे नहीं, चैत्यना द्रव्यथी संघरी राखेखें धान्य, गोळ, घी, तेल, वस्त्र प्रमुख आपे अने तेमां जे कमाणी थाय ते पोताना घरमा राखे. आवी रीते वेपार -

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