Book Title: Devdravya
Author(s): Mohanlal Sakarchandji
Publisher: Mohanlal Sakarchandji
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________________ (40) सात प्रकारनी शुद्धि साचववानी जरुर. ... * अंग वमन मन भूमिका, पूजोपगरण सार; ... न्याय द्रव्य विधि शुद्धता, शुद्धि, सात प्रकार. ... 1 अंग शुद्धि, 2 वस्त्र शुद्धि, 3 चित्त शुद्धि, 4 भूमिकाशुद्धि, 5 पूजा उपगरण शुद्धि, 6 द्रव्यशुद्धि अने 7 विधि विधान शुद्धि ए सात प्रकारमा शुद्धि आत्मार्थी जनोए पचित्र यात्रा प्रसंगे.पण अवश्य आचरवा योग्य छे. कहयुं छे के " साते शुद्धि समाचरी, करीये नित्य प्रमाण" मतलब के उक्त साते शुदिनु यथायोग्य सेवन करीनेज श्री तीर्थराजने प्रतिदिन प्रमाण करवो घटे छे...... . .. , .. प्रथम अंगशुद्धि-संसारीक कार्यमां रच्यापच्या रहेनार मलीनारंभी गृहस्थ जनोए परमपूज्य श्रीतीर्थपतिनी पूजा सेवामा प्रवर्तता देह शुद्धि विवेक पूर्वक करवी युक्त छे. श्रीमान् हरिभद्र सरिवरे अष्टकमां कह्युज छे के " प्रायः जळ व्यतिरिक्त जीवोनी विराधना न थाय तेम जयणा सहित देवाधिदेव तीर्थकर भगवान्नी तेमज निस्पृही मुनिजनोनी सेवाभाक्त करवा निमित्ते गृहस्थ जनोने द्रव्य स्नान करवानी अनुमति छे. अने तेम करतां गृहस्थ जनानो उद्देश उच्च होवाथी से तेमने पापबंधभणी नहिं, परंतु पुण्यपुष्टि निमित्ते थाय छे. सामान्य रीते तो शास्त्रमा कंइक उष्ण जळ वडेज शरीरशुद्धि करवा सूचव्युं छे. परंतु तीर्थजळ प्रस्तावे उष्ग जळनोज

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