Book Title: Devdravya
Author(s): Mohanlal Sakarchandji
Publisher: Mohanlal Sakarchandji

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Page 19
________________ (18) करतां तेणे एक हजार कांगणी उपार्जन करी' अने पोताना घरमां राखी. तेणे करी घोरकर्मनो बंध करी अंत समये आळोया पडीकम्या विना त्यांथी मरण पामीने समुद्रने विषे ते जळचर मनुष्य थयो. ते जळचर वज्रऋषभनाराच संघयणना धणी होय छे अने तेना शरीरमां जळतरणी गुटीको थाय छे. ए गुटीकाने ग्रहण करनारा वेपारीओए ते मच्छने पकड्यो, अने वज्रनी घंटीने विषे छ मास मुधी दल्यो, जेथी अत्यंत पीडा भोगवी त्यांची काळ करी त्रीजी नरके गयो. वेदांतने विषे पण क्रयुं छे के: देवद्रव्येण या वृद्धिः, गुरुद्रव्येण यद्धनं // तद्धनं कुलनाशाय,मृतोपि नरकं व्रजेत् // .1 / / ____अर्थ-देवद्रव्ये करीने जे वृद्धि थाय ते अने गुरुद्रव्ये करीने जे धननी प्राप्ति थाय ते धन कुळना नाशने अर्थ थाय छे अने मरण पाम्या पछी पण नरक प्रत्ये पमाडे छे. नरकने विषे अपार दुःख भोगवी त्यांची नीकळीने समुद्रने विषे पांचशे धनुषना शरीरवाळो मच्छ थयो. तेने म्लेच्छ लोकोए पकडी सर्वांग छेदन करी महाकदर्थना पमाडी. त्यांची काळ करीने छोथी नरके गयो. एवी रीते पहेलेथी मांडीने सातमी नरक सुधी घणी वखत जइ आव्यो, त्यार पछी कांगणी पोतानी उपजीवीकामां 1 हजार कांगणीना रुपिया साडाबार थाय छे. 3 गोळी.

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