Book Title: Devdravya
Author(s): Mohanlal Sakarchandji
Publisher: Mohanlal Sakarchandji
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________________ (24) उपरतुं द्रष्टांत श्रवण करवाथी सर्वे श्रावक भाइओना चित्तने विष देवद्रव्य संबंधी वास्तविक रीति प्रतिष्ठित थइ हशे, माटे हवे ते विषे क्यारे लखवानुं प्रयोजन नथी, एम जाणीने लेख पूरो कर्या अगाउ जणाव, जरुरतुं छे के, देवद्रव्य रक्षण करवू ते मुख्यत्वे करीने श्रीमंतोनी फरज छे. सबबके पुन्य प्राप्ति थवा माटे ज्ञान प्राप्त करवु अर्थात् विद्या भणवी, सामायक पोसहादि धर्मानुष्ठान करवा, छह अहमादि तपस्या करवी विगेरे जे जे कारणो शास्त्रकारे बतावेलां छे तेमांनां श्रीमंतोथी घणां थोडां बने छे, माटे श्रीमंतोने अपार पुण्यनी प्राप्ति करी लेवानुं ते मुख्य साधन छे. ___ आ उपरथी गरीबावस्थावालाए एम चिंतवq जोइतुं नथी के ज्यारे देवद्रव्यना रक्षण- काम श्रीमंतोनुं छे, त्यारे आपणे ते काममा चित्त शा माटे आपवू जोइए ? एवो विचार करवो ज घटित नथी; कारणके पूर्व लखायेला श्रीसंबोधसित्तरीना पाठमा सबै श्रावकोनी फरज छे एम बतावेलं छे. आ लेखनी पुष्टि माटे बीजा पण दृष्टांतनी जरुर जणातां तेवा त्रण चार दृष्टांतो आ नीचे आपवामां आव्यां छे. श्रीउपदेशप्रासाद ग्रंथना व्याख्यान १९३मामां चैत्यद्रव्यना संबंधमां नीचे प्रमाणे लखे छे.

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