Book Title: Devdravya
Author(s): Mohanlal Sakarchandji
Publisher: Mohanlal Sakarchandji

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ (12) तेने उवेखी मूके ते श्रावक बुद्धिहीण थाय अने पापकर्मे करीने लेपाय. ____ आ गाथा उपरथी एटलं सिद्ध थाय छे के भक्षण करवू अने उवेखी मूक ते बंने कोइ अपेक्षाए करीने शास्त्रकारे समतुल्य कहेल्लु छे माटे दरेक श्रावक भाइओए स्वशक्ति अनुसारे देवद्रव्यना रक्षण निमित्ते प्रयत्न करवो जोइए, पण एम न समजवू के संभाळ राखवी ते काम तो श्रीमंतनुं छे. शुं साधारण स्थितिवाळाओगें नथी ? सर्वेनुं छे; कारण के संभाळ करवी ते 1 सोनु छ कारण के संभाळ करवीत पोतानी शक्ति प्रमाणे छे. कोइ स्वद्रव्य अर्पण करीने देवद्रव्यनी वृद्धि करे छे, कोइ बगाड थएलो लक्षमा लइने बगाड करनारने शिक्षा करे छे, कोइ वीखराएलं द्रव्य एकछु करे छे, कोइ गरीबावस्थावाळा श्रावको तेवा कामनी प्रेरणा करे छ, अर्थात् कलम रुपी शमशेर चलावीने देवद्रव्यनी वृद्धि करावे छे अने नाश करनारने शिक्षा करावे छे. प्रसंग पडवाथी लोह समशेर करतां कलमरूपी समशेर वडे वधारे काम करी बतावे छे. आ वात ध्यानमा राखीने सर्व श्रावकोए यथाशक्ति प्रयत्न करवा उद्युक्त रहे जोइए. हवे तेमां पण जे उघराणी करवानी चिंता छे ते देवादिद्रव्यनी वृद्धिमा विशेष उपयोगी छे. तेथी ते विषे चिंता करनाराए पोताना द्रव्यनी जेम तेमां अभंग चित्ते प्रवर्तवू. अन्यथा जो उघ

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58