Book Title: Devdravya Author(s): Mohanlal Sakarchandji Publisher: Mohanlal Sakarchandji View full book textPage 5
________________ मुख्य फरज छे. आ उपरथी सत्य वर्तणुके वर्त्तवानुं सर्वे श्रावक भाइओए पोताना हृदयमां मुकरर करवू जोइए. देवद्रव्य संबंधी जूदा जूदा ग्रंथकारोए केवी रीते कथन करेलं छे ते ग्रंथना नाम साथे आ नीचे दर्शाव्युं छे: 1 श्रीसारावली पयन्नामां कहुं छे के:पूयाकरणे पुन्नं, एगगुणं सयंगुणं च पडिमाए / जिणभवणेण सहरसं, अनंतगुणं पालणे होइ // 1 // - अर्थ-पूजा करवाथी एकगणुं पुन्य थाय, तेथी सोगणुं पुन्य प्रतिमा भराववाथी थाय, तेथी हजारगणुं पुन्य जिनचैत्य कराववाथी थाय अने अनंतगणुं पुन्य तेनुं पालण करवाथी एटले तीर्थमुं, चैत्यर्नु अथवा देवद्रव्यतुं रक्षण करवाथी थाय. . 2 श्राद्धविधि ग्रंथमा देवद्रव्यने अधिकारे कर्तुं छे के, धरमादाना हरकोइ खाताना ओछामा ओछा चार पुरुष संभाळ करनार होवा ज जोइए, ते एवी रीते के एकनी पासे कुंची, बीजानो हुकम, बीना पासे नामुं अने चोथो माणस तपासीने सही करे. आ चारमाथी द्रव्यनी मोटी रकम काढवा मूकवामां बेथी त्रण जणाओए साथे रहेg जोइए. आवो बंदोबस्त होय तो ते द्रव्यनो बगाड थवानो बीलकुल संभव रहेतो नथी. ... 3 विवेकविलास नामे ग्रंथमा कयुं छे के, देवद्रव्य कोइनेPage Navigation
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